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कैंसर क्या है ?

कैंसर, कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि से संबंधित बीमारियों का एक वर्ग है । अगर इस बीमारी पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो यह बीमारी बढती जाएगी और अंत में मरीज की असमय मृत्यु हो जाएगी । यह बीमारी शरीर में कहीं भी हो सकती है और सभी आयु वर्ग, सामाजिक-आर्थिक स्तर और वंश के लोगों को हो सकती है । कैंसर विश्व में रुग्णता और मृत्यु-दर का प्रमुख कारण है । इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 में, विश्वभर में 141 लाख कैंसर के नए मामले, कैंसर से होने वाली मृत्यु 82 लाख और कैंसर की बीमारी के साथ जीने वाले 326 लाख लोग थे । हमारे देश में, प्रति वर्ष, 4.7 लाख कैंसर के नए मामले सामने आते हैं । केवल भारत में, प्रति वर्ष, कैंसर से 3.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है ।

कैंसर के कई प्रकार हैं : त्वचा के ऊपरी परत की कोशिकाओं में या मुह, गला, फेफड़े और अवयवों की कोशिकाओं में कार्सिनोमास बन जाते हैं, सर्कोमास हड्डियों, मासपेशियों, रेशेदार ऊतकों और कुछ अवयवों में पाया जाता है, ल्यूकीमिया खून, अस्थि मज्जा और तिल्ली में पाया जाता है, और लिम्फोमॉस लिम्फेटिक सिस्टम में पाए जाते हैं ।

 

कैंसर और उसके आण्विक आधार

कैंसर का तात्पर्य है कोशिकाओं की अनियमित और अप्रतिबंधित रूप से तीव्र वृद्धि/फैलाव । नैदानिक रूप से इसे एक वर्धन के रूप में देखा जाता है । नियोप्लास्म ऊतकों का असामान्य मॉस है जो असमन्वित तरीके से बढ़ता है और तब भी बना रहता है जब वर्धन के लिए जिम्मेदार उत्तेजक निकाल दिए गए हैं । एक ट्यूमर को सुदम तब माना जाएगा जब उसके लक्षणों को अपेक्षाकृत कम अहानिकर माना जाता है जिससे यह सुझाव मिलता है कि यह बीमारी आस-पास के या दूर के हिस्सों में नहीं फैलेगी, आसानी से उसका ऑपरेशन किया जा सकता है और मरीज के जीवन पर ज्यादा खतरा नहीं होता है । घातक अर्बुदों को सामूहिक रूप से कैंसर कहा जाता है । ‘कैंसर’ शब्द ‘क्रेब’ अर्थात ‘केकड़े’ के लिए लेटिन भाषा के शब्द से व्युत्पन्न हुआ है क्योंकि यह बीमारी केकड़े की तरह ऊतकों को शामिल करती है । घातक अर्बुद निकटवर्ती अवयवों पर धावा बोल उनका नाश कर सकते हैं और दूरस्थ स्थल (मेटास्टेट) तक फैल सकते हैं जिसके कारण मृत्यु हो सकती है । हर कैंसर से मृत्यु नहीं होती, जल्द पहचान होने पर और सही इलाज कराने पर, कुछ कैंसर ठीक हो सकते हैं ।

विविध बाहरी या आंतरिक उत्तेजन की प्रतिक्रिया स्वरूप आणविक स्तर पर होने वाले कुछ बदलाव के कारण कैंसर होते हैं । (चित्र 1) । इस तरह का आनुवंशिक बदलाव या म्यूटेशन अर्थात परिवर्तन पर्यावरण से जुड़े कारकों से अर्जित किया जा सकता है या जनन वंशक्रम में प्राप्त हो सकता है । पर्यावरण से जुड़े कारकों में शामिल है : प्राकृतिक कैंसरजन - अल्ट्रावायलेट और आयोनैजिंग विकिरण । रासायनिक कैंसरजन – तंबाकू के धुयें के घटक, अफ्लाटोक्सिन, एसबेस्टस, आर्सेनिक आदि, जैविक कैंसरजन – वायरसस, बक्टीरिया या परजीवी । दुर्दम नियोप्लासज्म में अत्यधिक वर्धन, स्थानीय आक्रामकता और दूरस्थ स्थलों पर मेटास्टासिस जैसी विविध लक्षण होते हैं (चित्र 2, टेबल 1) । एक कैंसर कोशिका में होने वाले प्रमुख बदलाव हैं – किसी प्रकार के वर्धन के संकेत के बिना प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होने की क्षमता, वर्धन का अवरोध करने वाले संकेतों का प्रतिरोध, कोशिकाओं के नियमित मृत होने की प्रक्रिया का विरोध, आस-पास के ऊतकों को शामिल करने के लिए रक्त आपूर्ति की नई क्षमता का गठन, दूरस्थ अवयवों को विक्षेप या मेटास्टासिस (चित्र 3) और क्षतिग्रस्त या खराब हुए डीएनए की मरम्मत करने या उसको ठीक करने में असफल ।

सामान्य कैंसर

पूरे विश्व में, फेफड़े, प्रोस्टेट, कोलो-रेक्टम, पेट और गुर्दे का कैंसर, पुरुषों में सामान्य रूप से पाये जाने वाले कैंसर हैं | महिलाओं में आम तौर पर कैंसर की बीमारी के लिए निदान किए जाने वाले शरीर के भाग हैं स्तन, कोलो-रेक्टम, फेफड़े, गर्भाशय मुख और पेट का कैंसर | घटते क्रम में, भारत के पुरुषों में, पाये जाने वाले आम कैंसर हैं - मुह का कैंसर, फेफड़े, पेट और कोलो-रेक्टल कैंसर | घटते क्रम में, भारत की महिलाओं में, पाये जाने वाले आम कैंसर हैं स्तन, गर्भाशय मुख, कोलो-रेक्टल कैंसर, गर्भाशय का कैंसर और मुँह का कैंसर |

 

भौगोलिक क्षेत्र, मौजूद सामाजिक परंपरायें तथा किस सामाजिक-आर्थिक वर्ग के हैं इसके अनुसार उपरोक्त कैंसर की घटनाओं में अंतर होता है | उदाहरण के लिए, मुँह का कैंसर भारतीय उप-महाद्वीप में पाया जाने वाला आम कैंसर है पर पश्चिमी देशों में इतना सामान्य नहीं है क्योंकि भारत में, चबाकर सेवन किए जाने वाले तम्बाकू के प्रकार जैसे गुटखा, पान, पान मसाला, खैनी, सुपारी आदि का अधिक इस्तमाल होता है | जननांग की सफाई पर ज्यादा ध्यान न देने के कारण गर्भाशय मुख के कैंसर के अधिक मामले निचले सामाजिक-आर्थिक वर्ग की महिलाओं में अधिक पाये जाते हैं | चर्बीदार खाना अधिक खाने तथा आहार में रेशा युक्त खाने का कम सेवन करने से कोलो-रेक्टल कैंसर के अधिक मामले देखे गए हैं |

कैंसर के कारण

कैंसर के सामान्य कारण चित्र 4 में दिए गए हैं और निम्नानुसार हैं
तंबाकू - तंबाकू का सेवन करना विश्वभर में कैंसर से होने वाली मृत्यु दर का एकल सबसे महत्वपूर्ण पर परिहार्य खतरे का कारण है | डब्ल्यूएचओ के अनुसार, प्रति वर्ष कैंसर से होने वाली मृत्यु में 22% तंबाकू के सेवन के कारण होती है | अधिकांश फेफड़े के कैंसर का कारण धूम्रपान करना है | ऐसे वयस्क जो धूम्रपान नहीं करते पर जिन्हें फिर भी कैंसर हुआ है उनमें इसका कारण अनिवारक धूम्रपान(धूम्रपान करने वाले व्यक्ति द्वारा जो धुँआ छोड़ा जाता है उसका श्वसन करना) बताया जाता है | जितनी अधिक बार धूम्रपान किया जाता है खतरा उतना ही अधिक हो जाता है | भारतीय उप-महाद्वीप में धुँआ-रहित तंबाकू का उपयोग अधिक प्रचलित है | धुँआ-रहित तंबाकू में गुटखा, पान मसाला, मशेरी, कच्चा तंबाकू, सुपारी की फंकी आदि आते हैं | फेफड़े, मुँह, गला, भोजन-नलिका, मूत्राशय, पैनक्रियास, गुर्दे, वृक्क, पेट, अंतड़ी, गर्भाशय, गर्भाशय मुख, अंडाशय, नाक और सायनस के कैंसर, तथा ल्यूकीमिया या ब्लड कैंसर के कुछ प्रकार के लिए तंबाकू का सेवन कारणकारी माना जाता है | (चित्र 5) तंबाकू में 4000 से अधिक तरह के रसायन होते हैं | इनमें से लगभग 200 मानव शरीर के लिए नुकसानदायक हैं और लगभग 70 विविध प्रकार के रसायनों में कैंसर के कारणकारी कारक के होने का पता चला है (चित्र 6) | विविध अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग तंबाकू का सेवन करना नहीं छोड़ते उनकी तुलना में जो लोग तंबाकू का सेवन करना छोड़ देते हैं उनमें बीमारी से ठीक होने के बाद जीवित रहने की संभावना अधिक होती है | तंबाकू का सेवन करने वाले लगभग 50% लोगों की मृत्यु तंबाकू के सेवन से होने वाली किसी न किसी प्रकार की बीमारी के कारण होती है | टाटा स्मारक अस्पताल कैंसर पर पाठ v 1.4 19-12-2016 में निकोटिन की जगह पर लेने के लिए 6 सम्पाक उपलब्ध हैं और इन्हें तंबाकू के व्यसन या लत को छुड़ाने के उपाय के रूप में बेचा जाता है | इस प्रकार के सम्पाक कितने सुरक्षित हैं यह निश्चित नहीं है | तंबाकू के व्यसन को कम या काबू में करने के लिए ये सम्पाक उतने असरदार नहीं पाए गए हैं | उनमें ही निकोटिन जैसे रसायन मौजूद रहते हैं जिससे कैंसर हो सकता है | ई-सिगरेट्स का उपयोग एक नई प्रवणता है | ये बैटरी लगाकर चलने वाले LED लाइट लगे उपकरण हैं | इनका इस्तमाल करने पर ये जलते हैं और निकोटिन छोड़ते हैं | ई-सिगरेट्स को सिगरेट्स की जगह पर लेने के लिए एक सुरक्षित विकल्प के रूप में गलत विज्ञापित किया गया है | ई-सिगरेट्स की सुरक्षा पर कई अध्ययन किए गए हैं | इनका सेवन करने से लगातार गले में खराश होना, दौरे पडना, न्युमोनिया और दिल का दौरा पड़ने की स्थिति पाई गयी है | इनमें निकोटिन होता है जो अत्यधिक व्यसनकारी होता है और अपने आप में ही कैंसरजन्य होता है | उनका सेवन करके छोड़े गए धुएं में तंबाकू विशिष्ट नाइट्रसमाइन्स तथा अन्य हानिकारक रसायन मौजूद पाए गए हैं | कई देशों ने इस प्रकार के उपकरणों की खरीद पर पाबंदी या रोक लगा दी है |
शराब –शराब पीने से कई प्रकार के कैंसर हो सकते हैं और अधिक मात्रा में शराब पीने से कैंसर के होने का खतरा बढ़ जाता है | धूम्रपान करने के साथ मद्यपान भी करने का सहक्रियात्मक सम्बन्ध होता है और अगर एक व्यक्ति, शराब और तंबाकू दोनों का सेवन करते हैं तो ऐसे लोगों को कैंसर की बीमारी होने का खतरा उन लोगों की तुलना में ज्यादा है जो दोनों में से किसी एक का सेवन करते हैं | मद्यपान करने से कई प्रकार के कैंसर होने का खतरा है जैसे मुँह, फरिंक्स, लारिंक्स, भोजन-नलिका, गुर्दे, कोलो-रेक्टम और स्तन का कैंसर|(चित्र5) .
सुपारी – सिर्फ सुपारी को मुँह में डालकर चबाया जाता है या सुपारी को पान, खैर, और चूने के साथ मिलाकर चबाया जाता है – इसे ‘पान’ कहा जाता है | पिसी हुई सुपारी, जिसे अन्य सामग्रियों के साथ मिलाकर एक मिश्रण के रूप में खाया जाता है, उसे ‘पान मसाला’ कहते हैं | अगर इसमें तंबाकू मिलाया जाता है तो इसे ‘गुटखा’ कहते हैं | इसका संबंध ‘सब म्यूकस फाइब्रोसिस’ से है जो कैंसर पूर्व होने वाली एक अवस्था है जिसमें गुटखा चबाने वाले व्यक्ति का मुँह खुलना धीरे-धीरे कम हो जाता है | ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रीसर्च इंटू कैंसर’ (आयएआरसी) ने गुटखे को पहले वर्ग के कैंसरजन में डाला है | यह देखा गया है कि गुटखे का सेवन करने से मुँह का कैंसर होता है | गुटखे का सेवन करने से गुर्दे और पैनक्रियास का कैंसर भी हो सकता है |
प्रदूषण – कैंसरजन रसायनों से हवा, पानी और मिट्टी का प्रदूषण इसमें आते हैं | हवा और पीने के पानी के जरिए इन रसायनों से संपर्क हो सकता है | आर्सेनिक जैसे रसायन, पीने के पानी को प्रदूषित करते हैं जिससे फेफड़े का कैंसर हो सकता है | कोयला जलाने से घर की हवा प्रदूषित होती है और इससे फेफड़े का कैंसर होता है | इसके अलावा, अफ्लाटोक्सिन्स से भोजन का संदूषण होने और ऐसा भोजन करने से भी कैंसर हो सकता है |
जीवनशैली से जुड़े कारण – अस्वास्थ्यकर खाने की आदतें और बिना कोई काम किए निठल्ले बैठे रहना इसके अंतर्गत आते हैं | ‘बॉडी मास इंडेक्स’(क्या आपका वजन शरीर के उपयुक्त है, यह जानने के लिए आपके कद और वजन का एक सूत्र द्वारा गणन कर निकाले जाने वाले आंकड़े) अधिक होने से भोजन-नलिका, कोलो-रेक्टम, स्तन, एंडोमेट्रियम आदि का कैंसर हो सकता है | अधिक मात्रा में लाल मास खाने से कोलो-रेक्टल कैंसर हो सकता है | यह देखा गया है कि सेहत के लिए अच्छा आहार जैसे सब्जियां, सलाद और फल खाने से कैंसर के कुछ प्रकार होने का खतरा कम हो जाता है |
मोटापा – इसका मतलब है शरीर में बहुत ज्यादा चर्बी जमा हो जाना | अगर किसी व्यक्ति का ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (बीएमआय) 25 से ज्यादा है तो उस व्यक्ति को ‘ओवरवेट’ या अतिभार कहा जाता है | जिनकी बीएमआय 30 से ज्यादा है उस व्यक्ति को ‘ऑबीस’ या मोटा कहा जाता है | इससे दिल की बीमारी, मधुमेह और विविध प्रकार के कैंसर जैसे एंडोमेट्रियम, कोलन,स्तन, भोजन-नलिका, पैनक्रियास आदि होने का अधिक खतरा है | अगर आप मोटे हैं तो आपको ऊपर बताये गए कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही, अगर मोटापे के कारण आपको ऊपर बताया गया कोई कैंसर होता है तो उससे आपकी मृत्यु होने की संभावना भी बढ़ जाती है | मोटापे के खतरे को कम करने के लिए उपयुक्त स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम की जरूरत है |
पेशे के कारण होने वाला संपर्क –ऐसा देखा गया है कि कुछ पेशे के लोगों में कुछ कैंसर के प्रकार होने की संभावना ज्यादा है | एस्बेस्टोस, कैडमियम, इथायलीन ऑक्सायड, बेन्जोपायरीन, सिलिका, रेडोन जैसे आयोनायजिंग रेडियेशन, टेनिग के उपकरण, एलुमिनियम और कोयला उत्पादन, लोहा और स्टील फौन्डिंग जैसे पदार्थ के संपर्क में आने से विविध प्रकार के कैंसर का होना देखा गया है | इनके बारे में जानकारी जरूरी है क्योंकि पर्याप्त जानकारी रखने तथा सावधानी बरतने से अधिकांश कैंसर के प्रकार का निवारण हो सकता है | पेशे के कारण होने वाले संपर्क से फेफड़े, मूत्राशय, ल्यूकीमिया, त्वचा का कैंसर जैसे सामान्य कैंसर हो सकते हैं | यूवी रेस मिलाकर दिया जाने वाला रेडियेशन – अल्ट्रावायलेट रेडियेशन के कारण बेसल सेल कार्सिनोमा, स्क्वेमस सेल कार्सिनोमा और मेलानोमा जैसे त्वचा के कैंसर होते हैं |आयोनायजिंग रेडियेशन के संपर्क में आने से कई प्रकार के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है | जापान पर जब एटॉमिक बम्ब गिराया गया तब जो लोग जीवित बच गए उनपर इसका व्यापक अध्ययन किया गया है |
जैविक एजेंट्स - इसके अंतर्गत विविध प्रकार के वाइरस या विषाणु, पैरासाइट या परजीवी और जीवाण्विक या बेक्टीरियल संक्रमण आते हैं जिससे मरीज को कुछ ख़ास प्रकार के कैंसर होने की प्रवणता होती है | ह्युमन पापिलोमा वायरस (एचपीवी) का संबंध गर्भाशय मुख के कैंसर और ऑरोफरिन्जियल कैंसर से है | हेपाटिटिस बी और सी का संबंध वृक्क के कैंसर से है | पैरासिटिक या परजीवी(स्कीस्टोसोमियासिस) संक्रमण से मूत्राशय का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है | एच-पायलोरी संक्रमण से पेट का कैंसर होता है | सावधानी बरतने, टीकाकरण तथा जल्द निदान और इलाज कराने से इन संक्रमणों से बचा जा सकता है |

कैंसर की स्क्रीनिंग या जांच

कैंसर की स्क्रीनिंग या जांच

‘स्क्रीनिंग’ का मतलब है एक व्यक्ति, जिसमें बीमारी के लक्षण विकसित नहीं हुए हैं उसमें बीमारी को पहचानना | इसमें, रोग-ग्रस्त व्यक्तियों को पहचानने के लिए आम जनता या अधिक खतरा रखने वाले वर्ग पर आसान जांच किए जाते हैं | इस प्रकार, रोग-ग्रस्त व्यक्ति में रोग के लक्षण नजर आने से पहले ही उसकी पहचान की जा सकती है | स्क्रीनिंग से कई प्रकार के कैंसर की जल्द पहचान और निदान में मदद होती है | इस प्रकार के कैंसर की जल्दी पहचान करने का मतलब है बीमारी को काबू में करने की बेहतर संभावना | स्तन, गर्भाशय मुख, मुँह और कोलो-रेक्टम के कैंसर की प्रारंभिक जांच करने के लिए स्क्रीनिंग एक उपयोगी हथियार है |
स्तन का कैंसर - मेमोग्राफ्री टेस्ट करके स्तन के कैंसर की स्क्रीनिंग की जाती है | मेमोग्राफ्री करने का अर्थ है स्तन का एक्स-रे करना | एक स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में मेमोग्राफ्री की क्षमता, अध्ययनों में सिद्ध हुई है और इससे स्तन कैंसर से जुडी रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने में मदद होती है | जिन लोगों के परिवार के सदस्यों या रिश्तेदारों को स्तन का कैंसर हुआ है उन्हे नियमित रूप से यह जांच करानी चाहिए | स्तन की स्वयं जांच करने से, अगर स्तन में सूजन होती है तो महिला को उसके बारे में पता चलता है |
गर्भाशय मुख का कैंसर – महिलाओं में गर्भाशय मुख के कैंसर की जांच करने के लिए ‘पप स्मीयर’ किया जाता है (चित्र 7) | इसमें गर्भाशय से लिए गए एक स्मीयर या धब्बे को माईक्रोस्कॉप के नीचे रखकर यह जांच की जाती है कि क्या उसमें कैंसर-पूर्व या कैंसर की कोशिकायें मौजूद हैं | यह, कम खर्च में होने वाला स्क्रीनिंग या जांच का प्रकार है | 35-40 से अधिक की उम्र की सभी महिलाओं को अपना पप स्मीयर जांच कराना चाहिए | इसके अलावा, कई स्थानों पर एसेटिक एसिड लगाकर गर्भाशय मुख की, आँखों से जांच की जाती है |
मुँह का कैंसर - मुँह के कैंसर के लिए जांच कराना जरूरी है क्योंकि बिना किसी ख़ास उपकरण या विशेषज्ञता के, आँखों से जांच करने पर ओरल म्युकोसा की आसानी से पहचान हो जाती है तथा मुँह में होने वाले ज्यादातर कैंसर के मामलों में, उसकी पूर्वावस्था में छाले होते हैं जो दिखते हैं | ल्यूकोप्लेकिया और एरिथ्रोप्लेकिया आम तौर पर पाए जाने वाले कैंसर-पूर्व छाले हैं (चित्र 8) | ल्यूकोप्लेकिया में मुँह में एक सफ़ेद धब्बा आता है, जिसके होने के लिए कोई और कारण नजर नहीं आता | इसी प्रकार के लाल धब्बे को ‘एरिथ्रोप्लेकिया’ कहते हैं | इन छालों के, मेलिग्नेन्ट होने ही संभावना को दूर करने के लिए उस भाग की बायोप्सी की जा सकती है | चित्र 8: तंबाकू चबाने वाले एक व्यक्ति के मुँह की क्लिनिकल फोटो, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में कैंसर-पूर्व और कैंसर के धब्बे दिख रहे हैं |
कोलो-रेक्टल कैंसर – इस कैंसर की स्क्रीनिंग उन लोगों में की जाती है जिनके परिवार के सदस्यों को इस तरह के कैंसर हुए हैं या जो ‘इनफ्लेमेटरी बोवेल डिसीज’ जैसी अवस्थाओं से ग्रस्त हैं और जिनमें मलिग्नेंसी या कैंसर होने की अधिक संभावना है | मल में गुप्त रक्त(जो स्थूल रूप में नजर नहीं आता) की मौजूदगी को जानने के लिए जांच की जाती है और कुछ मामलों में कोलोनोस्कोपी भी की जाती है |

कैंसर का इलाज

क्लिनिकल जांच -मरीज को होने वाले रोग लक्षणों की पूरी हिस्ट्री को अच्छी तरह जानकर तथा मरीज की क्लिनिकल जांच करके, कैंसर के एक मरीज का संपूर्ण मूल्यांकन करना चाहिए | बीमारी, शरीर में कहाँ तक फ़ैली है इसका निर्धारण करने तथा शरीर के जिस हिस्से में कैंसर हुआ है उसके आसपास के दूसरे महत्वपूर्ण अंगों के साथ उसके संबंध का निर्धारण करने का प्रयास किया जाता है | जख्म या छाले की जांच करने के लिए ‘एंडोस्कोपी’ नामक जांच करानी पड सकती है | यह भी देखा जाता है कि क्या मरीज को कोई दूसरी बीमारी है जिसका असर कैंसर के इलाज पर पड सकता है | इस बात की भी जाँच की जाती है कि क्या रोग शरीर के दूसरे अवयवों में फ़ैल गया है | पथोलोजिक निर्धारण – क्लिनिकल जांच के साथ-साथ जख्म या छाले के एक छोटे से भाग की बायोप्सी की जाती है और हिस्टोपथोलोजिकल जांच के लिए भेजी जाती है | जरूरत पड़ने पर उस जख्म या छाले से एस्पिरेशन या स्राव निकालकर सायटोलोजिकल जांच के लिए भेजी जाती है | इन दोनों ही जांचों में, क्या शरीर में कैंसर की कोशिकायें मौजूद हैं तथा किस तरह की कैंसर कोशिकायें मौजूद हैं यह जानने के लिए माईक्रोस्कॉप और कुछ ख़ास प्रकार के स्टेंस का उपयोग किया जाता है | एक बार, बीमारी का उपयुक्त क्लिनिकल और रेडियोलोजिकल निर्धारण हो जाय तो, मौजूदा स्टेजिंग के दिशा-निर्देशों के अनुसार कैंसर की स्टेजिंग या अवस्था का निर्धारण किया जाता है | आगे का इलाज इस बात पर निर्भर करेगा कि कैंसर किस प्रकार का है और कौन सी अवस्था में है | सर्जरी, रेडियोथेरपी और कीमोथेरपी, उपलब्ध इलाज के विविध प्रकार हैं | बीमारी किस अवस्था में है इसके अनुसार इनमें से कोई एक इलाज दिया जा सकता है या उपरोक्त इलाज के विविध प्रकारों को, एक दूसरे के साथ मिलाकर दिया जा सकता है |
सर्जरी – कैंसर के संदर्भ में ‘सर्जिकल काट’ का मतलब है जहाँ जख्म या छाला हुआ है उस भाग के दोनों तरफ जगह छोड़कर काट लगाना | प्रारंभिक जख्म या छाले के साथ, आस-पास की लसिका ग्रंथियों पर भी ध्यान दिया जाता है | सर्जरी पूरी होने के बाद, शरीर के उस भाग को या तो वैसे ही बंद किया जाता है या उस स्थल से, या आस-पास के हिस्से से लिए गए या दूसरे के शरीर से लिए गए ‘फ़्लैप्स’(त्वचा) से सर्जरी किए गए भाग को फिर से बनाना पड सकता है | (चित्र 9)


रेडियोलोजी द्वारा निर्धारण –क्लिनिकल जांच के साथ-साथ रेडियोलोजिकल इमेजिंग भी किया जाता है | जरूरत के अनुसार एक्स-रे, अल्ट्रा-सोनोग्राफी, सीटी स्कैन, एमआरआय स्कैन या पेट स्कैन करानी पड सकती है | आवश्यकतानुसार इनमें से कोई रेडियोलोजिकल जांच करने से जख्म या छाले का बेहतर तरीके से निर्धारण किया जा सकता है, और यह भी पता लगाया जा सकता है कि क्या बीमारी लोको-रीजिनल है अर्थात क्या बीमारी शरीर के उसी हिस्से तक सीमित है या दूसरे अवयवों में भी फैला है | टाटा स्मारक अस्पताल कैंसर पर अध्याय v 1.4 19-12-2016
कीमोथेरपी – चित्र 11 में बताये अनुसार कैंसर का इलाज करने के लिए कई प्रकार की दवाइयों का उपयोग किया जाता है | ये दवाइयाँ अलग अलग तरह से असर करती हैं और विविध अवस्थाओं की कोशिकाओं पर असर करती हैं जिससे कोशिकाओं का नाश हो जाता है | ये दवाइयाँ किस तरह असर करती हैं इसके बारे में यहाँ विस्तार से बताना संभव नहीं है | कैंसर के इलाज के लिए, अलग अलग सेटिंग्स में ये दवाइयां दी जा सकती हैं | कीमोथेरपी को प्रारंभिक इलाज के रूप में रेडियेशन के साथ मिलाकर दिया जा सकता है या एड्जुवेंट सेटिंग में दिया जा सकता है या पलियेटिव थेरपी या दर्द निवारक के रूप में दिया जा सकता है |
पलियेटिव केयर – कई बार, कैंसर की बीमारी शरीर में फैलकर ऐसी अवस्था में पहुँच जाती है जहाँ इलाज देकर बीमारी को ठीक करना संभव नहीं होता है | मरीज, बीमारी की बहुत ही एडवांसड अवस्था में होता है या उन्हें ‘डिस्टेंट मेटास्टेसिस’ हो जाता है | ऐसे मामले, जहाँ बीमारी के ठीक होने की उम्मीद नहीं होती है, वहाँ, बीमारी से मरीज को होने वाली तकलीफ को कम करने के लिए उन्हें पलियेटिव इलाज दिया जाता है | पलियेटिव केयर में, कैंसर की बीमारी को ठीक करने के स्थान पर मरीज को इस बीमारी से होने वाली तकलीफ को कम किया जाता है | कुछ चुनिंदा मरीजों को कीमोथेरपी या रेडियोथेरपी दी जा सकती है | अगर मरीज की शारीरिक स्थिति बहुत ही खराब है तो उन्हें उत्तम देखभाल दिया जाता है | दर्द को कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं और अपनी रोजमर्रा की गतिविधियाँ जारी रखने में मरीज की मदद की जाती है | कुछ मामलों में होस्पायस केयर(जीवन की अंतिम अवस्था के मरीजों की देखभाल करने वाली संस्थायें) की जरूरत पड सकती है |

कैंसर का निवारण

इस अध्याय के अंत में हम बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर आते हैं – कैंसर का निवारण | कैंसर से बचने के लिए आप क्या कर सकते हैं |

सर्वप्रथम – तंबाकू का सेवन बंद करें | कैंसर से होने वाली मौतों में 20% तक के लोगों में इसका सबसे बड़ा कारण तंबाकू है | तंबाकू, जिसे चबाया जा सकता है और जिसे चबाया नहीं जा सकता ऐसे दोनों प्रकार के तंबाकू का सेवन न करें |
मद्यपान बंद करें स्वस्थ जीवनशैलीशरीर को नियमित रूप से क्रियाशील रखने तथा फल और सब्जियों से संपुष्ट आहार लेने से कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है |
गुतांगों की अच्छी सफाई
सुरक्षित लैंगिक संबंध के साथ गुप्तांगों की अच्छी सफाई बनाए रखने से ह्युमन पापिलोमा वायरस (एचपीवी) का खतरा कम हो जाता है और गर्भाशय मुख तथा ऑरोफरिन्जियल कैंसर होने का खतरा घट जाता है | किशोरावास्था की लड़कियों के लिए एचपीवी संक्रमण से बचाव के लिए टीका भी उपलब्ध है |
प्रदूषण कम करना - घर के अंदर और बाहर, दोनों जगहों में होने वाले प्रदूषण को कम करने से कैंसर की बीमारी होने का खतरा कम हो जाता है | पुरातन इंधन कोयले का उपयोग करने से घर में होने वाले प्रदूषण से फेफड़े का कैंसर हो सकता है | विविध कैंसर जन्य पदार्थों से हवा और पानी का प्रदूषण बाहरी प्रदूषण के अंतर्गत आते हैं |
कार्यस्थल पर सावधानी बरतें – वे लोग जो ऐसा व्यवसाय करते हैं जिसमें वे कैंसरजन्य मिश्रण या रेडियेशन के संपर्क में आते हैं, उन्हें पर्याप्त सुरक्षा दी जानी चाहिए और समय-समय पर उनकी जांच की जानी चाहिए |
हेपाटिटिस बी वायरस का संक्रमण - इससे गुर्दे का कैंसर हो सकता है | संक्रमित खून के उत्पादों से संक्रमण न फैले, इसके लिए उचित सावधानी बरतनी चाहिए | हेपाटिटिस बी वायरस के लिए टीका भी उपलब्ध है और इसका संपूर्ण डोस लें |
परिवार की हिस्ट्री जिन लोगों के परिवार के सदस्यों को स्तन, थाईरोइड, कोलो-रेक्टल कैंसर की बीमारी हुई है, उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उन्हें कैंसर होने का कितना खतरा है | उन्हें डॉक्टर से खुद की जांच करानी चाहिए और कैंसर के प्रारंभिक रोग लक्षणों के बारे में जानकारी होनी चाहिए |

 

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