मूत्राशय के कैंसर के तीन प्रमुख प्रकारों में से सबसे आम है ट्रांसिशनल सेल कार्सिनोमा । कम सामान्य मूत्राशय के कैंसरों में स्कवामस सेल कार्सिनोमास और अडिनोकार्सिनोमास शामिल हैं ।
एक मरीज के इलाज और जीवित रहने का दर इस बात पर निर्भर है कि कैंसर ने कितनी गहराई तक उनके मूत्राशय पर धावा किया है, और क्या यह बीमारी मूत्राशय के आस-पास के स्थल या दूरस्थ स्थलों तक फ़ैल गया है ।
मूत्राशय के कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण है पेशाब के साथ खून का आना । यह रोग-लक्षण आम तौर पर दर्द-रहित होता है, और हमेशा नग्न आँखों को दृश्य नहीं होता है । अक्सर, मूत्राशय के कैंसर का पता लगने में विलंब होता है क्योंकि रक्तस्राव आंतरायिक आर्थात रुक-रुक कर होती है । अन्य रोग लक्षणों में बार-बार पेशाब का आना, बार-बार पेशाब करने की प्रवणता, पेशाब करने के एहसास का होना पर पेशाब न आना, और पेशाब करते समय दर्द होना शामिल है ।
अगर आपको ऊपर बताये गए में से एक या एक से ज्यादा रोग-लक्षण हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपको मूत्राशय का कैंसर है । पर, डॉक्टर को दिखाना जरूरी है ताकि अगर कोई बीमारी हो तो जल्द से जल्द उसका पता लगाया जा सके और सही इलाज दिया जा सके ।
मूत्राशय के कैंसर का निदान अक्सर पेशाब में पाई जाने वाली कोशिकाओं को माईक्रोस्कॉप के नीचे रखकर उनकी जांच करके तथा सिस्टोस्कोप नाम की एक पतली ट्यूब/नली जिसमें लेंस और एक लाइट लगी हुई है, को मूत्रमार्ग के द्वारा मूत्राशय में घुसेडकर किया जाता है ।
अगर कैंसर होने की शंका होती है तो सिस्टोस्कोपिक प्रक्रिया के दौरान ऊतक का एक सैंपल निकाला जाता है और माईक्रोस्कोप के नीचे रखकर उसकी जांच की जाती है । अगर कैंसर होने की पुष्टि होती है तो कैंसर किस स्तर का है– क्या कैंसर मूत्राशय तक ही सीमित है या बीमारी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे लसीका ग्रन्थी, फेफड़े, हड्डियां या गुर्दे तक फैला है यह जानने के लिए कमप्युटेड टोपोग्राफी (सीटी) की भी जरूरत पड सकती है । क्या मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआय) और पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) मूत्राशय के कैंसर का अधिक सठीक निदान और स्तर का निर्धारण कर सकता है यह जानने के लिए टाटा स्मारक केंद्र में अनुसंधान किया जा रहा है ।
निदान के समय कैंसर किस स्तर का है इसके अनुसार मूत्राशय के कैंसर के इलाज में बदलाव होता है ।
सतही मूत्राशय का कैंसर/ / Superficial Bladder Cancer
ज्यादातर मूत्राशय के कैंसर ट्रांसिशनल सेल कार्सिनोमास (टीसीसी) होते हैं जो मूत्राशय की परत तक सीमित रहते हैं । सतही मूत्राशय के कैंसर के लिए मानक इलाज है सिसटोस्कॉप का इस्तमाल करके मिनिमली इनवेसिव सर्जरी द्वारा ट्यूमर को निकालना ।
इनवेसिव/आक्रामक मूत्राशय का कैंसर / Invasive Bladder Cancer
इनवेसिव मूत्राशय का कैंसर - कैंसर जो मूत्राशय के मांसपेशियों की परत में या उसके आगे तक फ़ैल गई है - के लिए सबसे सामान्य इलाज है सर्जरी करके मूत्राशय को निकालना –– और ज्यादातर मरीजों को लम्बे समय तक स्वस्थ रहने का सुअवसर देती है ।
जिन मरीजों को मूत्राशय में ट्यूमर हुआ है और पूरा मूत्राशय निकालने के लिए सर्जरी करने की आवश्यकता है, उनमें कैंसर की पुनरावृत्ति या मेटास्टासिस से बचने के लिए आसपास की लसीका ग्रंथियों को निकालना जरूरी है । महिलाओं में, इस प्रक्रिया के अंतर्गत मूत्रवाहिनी का निचला हिस्सा, गर्भाशय, डिम्बवाही नली, अंडाशय और कभी कभी योनी की परत का भाग और मूत्रमार्ग भी निकालने की प्रक्रिया शामिल है । पुरुषों में, प्रोस्ट्रेट ग्रन्थी, मूत्रवाहिनी का निचला हिस्सा और कभी कभी मूत्रभाग निकाला जाता है । मूत्राशय निकालने के बाद, शरीर द्वारा पेशाब को जमा करके रखने और निकालने के लिए सर्जन को नया रास्ता तैयार करना होगा । आयलील कन्डिट नामक पुरातन पद्धति में पेशाब को जमा करने के लिए मरीज को अपने शरीर के बाहरी हिस्से में एक थैली लगानी होती है । इस प्रक्रिया के दौरान, छोटी आंतडी के एक हिस्से का इस्तमाल करके पेशाब के लिए एक नाली तैयार की जाती है । इसके द्वारा पेशाब गुर्दे और मूत्रवाहिनी से सीधा अंतरित हो जाता है और पेशाब को थैली में पहुँचाने के लिए त्वचा पर एक स्टोमा की जरूरत होती है ।
जिन लोगों का मूत्रमार्ग निकाल दिया गया है, उनमें एक आंतरिक मूत्राशय तैयार किया जाता है और फिर सीधे उदर की परत पर लगाया जाता है । आंतरिक मूत्राशय से स्टोमा जोड़ा जाता है और जमा हुए पेशाब को निकालने के लिए मरीज स्टोमा में एक कथेटर घुसेडता है । इस तरह मूत्राशय को खाली करने के लिए तीन से पांच मिनट का समय लगता है ।
मांसपेशियों में फैले मूत्राशय के कैंसर के कई मरीजों को, कैंसर की पुनरावृत्ति से बचने में मदद के लिए M-VAC या अन्य प्रकार जिनके कम दुष्परिणाम होते हैं का इस्तमाल करके सर्जरी के पहले या बाद में कीमोथेरपी देकर इलाज किया जाता है ।
प्रारम्भिक हड्डी का कैंसर – कैंसर जो वास्तव में हड्डी के ऊतकों में शुरू होता है – अपेक्षाकृत दुर्लभ है । हड्डी का कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से की हड्डियों में हो सकता है, पर अक्सर यह बाजुओं और पैरों की हड्डीयों में होता है ।
यह किसी भी उम्र में हो सकता है पर सबसे आम हड्डी के कैंसर बच्चों और युवा वयस्कों में पाया जाता है ।
प्रारम्भिक हड्डी का कैंसर, कैंसर जो वास्तव में हड्डी के ऊतकों में शुरू होता है, अपेक्षाकृत दुर्लभ है । प्रति वर्ष लगभग 2,400 मामलों का निदान होता है । प्रारम्भिक हड्डी का कैंसर वयस्क मानव शरीर के 206 में से किसी भी हड्डी में हो सकता है, पर अक्सर यह बाजुओं और पैरों की हड्डीयों में होता है । यह किसी भी उम्र में हो सकता है पर सबसे आम हड्डी के कैंसर बच्चों और युवा वयस्कों में पाया जाता है ।
हड्डी का कैंसर उन कोशिकाओं में होता हैं जो हड्डी के ऊतक को सख्त बनाते हैं । अस्थि मज्जा में तैयार होने वाली कोशिकाओं में होने वाले कैंसर जैसे ल्यूकीमिया, मल्टीपल मईलोमा, और लिम्फोमा यद्यपि हड्डी पर असर करते हैं और उसके लिए ओर्थोपेडिक प्रबंधन की जरूरत पड सकती है, को हड्डी का कैंसर नहीं माना जाता ।
सुदम (गैर कैंसरग्रस्त) हड्डी के ट्यूमर दुर्दम्य (कैंसरग्रस्त) हड्डी के ट्यूमर से अधिक आम हैं । यद्यपि सुदम टयूमर फैलते नहीं हैं, और इनके होने से विरले ही जीवन को खतरा होता है, दोनों ही प्रकार के ट्यूमर बढ़ सकते हैं और स्वस्थ हड्डी के ऊतक को दबा सकते हैं और उसके स्थान पर असामान्य ऊतक आ सकता है ।
--फिब्रोसर्कोमास / Fibrosarcomas आम तौर पर घुटने या नितम्ब के हिस्से में होता है । अधिक उम्र के मरीज जिन्हें दूसरे प्रकार के कैंसर हुए हैं और इलाज के रूप में रेडियेशन थेरपी लेते हैं उनमें इसके बाद फिब्रोसरकोमा हो सकता है ।
--अडामनटीनोमास / Adamantinomasआम तौर पर अन्तर्जंघिका में होता है ।
--चोर्दोमास / Chordomas ज्यादातर सेक्रम या त्रिक – रीढ़ का निचला हिस्सा, जिसे टेलबोन भी कहा जाता है में पाया जाता है ।
मेटास्टाटिक हड्डी का कैंसर / Metastatic Bone Cancer
मेटास्टाटिक हड्डी का कैंसर – कैंसर जो शरीर में कहीं और आरम्भ होता है और फिर हड्डी में फैलता है –प्राथमिक हड्डी के कैंसर से अधिक आम है । किसी भी प्रकार का कैंसर हड्डी में फैल सकता है पर सबसे सामान्य हैं स्तन, फेफड़े, गुर्दे, थाईरोइड और प्रोस्ट्रेट का कैंसर । हड्डी का मेटास्टासिस ज्यादातर नितम्ब, फेमर (जांघ की हड्डी), कंधे और रीढ़ में होती है । अन्य प्रकार के कैंसर की तरह, हड्डी में आरम्भ होने वाले कैंसर भी शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है । इस सामान्य रूपरेखा का शेष भाग प्राथमिक हड्डी के कैंसर ओस्टियोसार्कोमा और ईविंग्स सार्कोमा पर केन्द्रित है ।
हड्डी के कैंसर का सबसे सामान्य रोग लक्षण है दर्द, जो या तो ट्यूमर के फैलने से होता है या ट्यूमर से कमज़ोर होकर हड्डी के टूटने से होता है । हड्डी में सख्ती या नरमी भी हो सकती है । कभी-कभी कुछ अन्य रोग-लक्षण भी हो सकते हैं जैसे थकान, बुखार, सूजन और लडखडाना ।
पर ये रोग लक्षण अन्य कारणों से भी हो सकता है । केवल एक डॉक्टर यह निश्चित रूप से बता सकता है कि मरीज को हड्डी का कैंसर है या नहीं ।
ज्यादातर बीमारियों की तरह, संदेहास्पद हड्डी के कैंसर के निदान का पहला भाग है मरीज के व्यक्तिगत और परिवार के मेडिकल हिस्ट्री के बारे में डॉक्टर से चर्चा करना । फिर डॉक्टर मरीज की पूरी मेडिकल जांच करते हैं और विविध टेस्ट भी करते हैं ।
प्रयोगशाला जांच
एक विशेष टेस्ट है मरीज के खून में अल्कालाइन फोस्फेटस की उपस्थिति का पता लगाने के लिए मरीज के खून की जांच करना । अल्कालाइन फोस्फेटस एक एन्जआईएम है जो खून में उस समय बहुत उच्च मात्रा में पाया जाता है जब हड्डी तैयार करने वाली कोशिकाएं बहुत सक्रीय होती हैं । इस प्रकार की उच्च प्रतिक्रिया होती है जब एक छोटे बच्चे की हड्डियाँ बढती हैं या जब टूटी हुई हड्डी ठीक हो रही है । अन्यता, यह इस बात की सूचना हो सकती है कि एक ट्यूमर असामान्य हड्डी के ऊतक तैयार कर रहा है । दूसरे कारणों से भी अल्कालाइन फोस्फेटस की मात्रा बढ़ सकती है, इसलिए उच्च मात्रा इस बात की सूचना नहीं है कि मरीज को हड्डी का कैंसर है, पर इस बात का संकेत अवश्य देती हैं कि और मूल्यांकन करने की आवश्यकता है ।
इमेजिंग टेस्ट
एक डॉक्टर सामान्य तौर पर एक्स-रे जैसे इमेजिंग टेस्ट कराने के लिए कहेंगे, जिससे डॉक्टर किसी हड्डी में किसी प्रकार की असामान्य वृद्धि को देख पायेंगे । अस्थि-पंजर में और असामान्य भाग हैं यह जानने के लिए इसके बाद हड्डी का स्कैन किया जा सकता है । बॉण स्कैन के पहले, नस में “ट्रेसर” पदार्थ की छोटी सी मात्रा चढाई जाती है । कुछ घंटों बाद, यह ट्रेसर सामग्री, जो थोड़ा रेड़ियोसक्रीय है, उन जगहों पर जमा हो जाता है जहां नई हड्डी बढ़ रही है । संभावित हड्डी के ट्यूमर के सठीक आकार और माप देखने, और क्या इस ट्यूमर ने आसपास के ऊतक या अस्थि मज्जा के भाग पर भी संक्रमण किया है यह जानने के लिए अक्सर एक सीटी (कॉमप्युटेड टोमोग्राफी) या एमआरआय (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) स्कैन करने के लिए कहा जाता है ।
बायोप्सी
एक निश्चित निदान करने के लिए संदेहजनक हड्डी के ऊतक की बायोप्सी करने की आवश्यकता होती है । अगर ट्यूमर छोटा है तो डॉक्टर पूरा ट्यूमर निकाल सकते हैं, और फिर, यह ट्यूमर कैंसरजन्य है या नहीं यह जानने के लिए मैक्रोस्कोप के नीचे रखकर उसके सैंपल का विश्लेषण कर सकते हैं । इस प्रक्रिया को “एक्सिशनल बायोप्सी” कहते हैं । अन्य मामलों में, डॉक्टर त्वचा पर एक छोटा छेद बनायेंगे और जांच के लिए ट्यूमर का एक छोटा सा हिस्सा निकालेंगे – एक ओपन बायोप्सी” या डॉक्टर ‘नीडल बायोप्सी’ कर सकते हैं, जिसमें सुई से त्वचा के अंदर से ट्यूमर का एक सैंपल निकाला जाता है । यह जरूरी है कि एक अनुभवी और कुशल डॉक्टर ही बायोप्सी करे, क्योंकि अगर बायोप्सी सही तरीके से नहीं की गई तो आगे चलकर इलाज के विकल्प सीमित हो सकते हैं ।
ऊतक कैंसरजन्य है या नहीं, और अगर कैंसरजन्य है तो, कैंसर के सही प्रकार की पहचान करने के लिए एक पथोलोजिस्ट बायोप्सी के सैंपल की जांच करते हैं । कैंसर के सही प्रकार की पहचान करना अत्यावश्यक है क्योंकि अलग-अलग प्रकार के हड्डी के कैंसर के लिए इलाज की प्रतिक्रया अलग होती है ।
पेशीकंकाली ट्यूमर के लिए सर्जिकल उच्छेदन इलाज का मुख्य प्रकार है, फिर भी उच्च स्तर के सार्कोमा के मरीज का इलाज केवल सर्जरी से करना असामान्य है । इन मरीजों के एकीकृत प्रबंधन के लिए कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी जैसे एड्जुवेंट प्रकार/रीतियाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । अधिकांश हड्डी के ट्यूमर को कीमोथेरपी दिया जाता है जबकि ईविंग्स सार्कोमा जैसे कुछ को अतिरिक्त रेडियोथेरपी देने से लाभ होगा ।
सर्जरी
कैंसरग्रस्त हड्डी को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है । यह सुनिश्चित करने के लिए कि जितना संभव हो वे कैंसर के ऊतक निकाल रहे हैं, ऑपरेशन करके, हड्डी के ट्यूमर को निकालते समय सर्जन, आसपास की हड्डी और मांसपेशियों को भी निकालते हैं । अगर बाजू या पैर का ऑपरेशन किया जा रहा है तो सर्जन जहां तक संभव हो अंग और उसकी क्रियाशीलता को बचाने का प्रयास करेंगे । कभी-कभी, जिस हड्डी को निकाला जाता है उसकी जगह पर शरीर के दूसरे हिस्से की हड्डी, टिश्यु बैंक से प्राप्त हड्डी या कृत्रिम प्रतिस्थापन द्वारा हड्डी को प्रतिस्थापित किया जाता है ।
रेडियेशन थेरपी
ट्यूमर को नष्ट करने या ट्यूमर के आकार को कम करने के लिए कभी-कभी सर्जरी के साथ-साथ रेडियेशन थेरपी भी दी जाती है । सर्जरी के बाद बची हुई कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए या जिन ट्यूमरों को सर्जरी करके निकाला नहीं जा सकता उनके लिए कभी-कभी कीमोथेरपी के साथ मिलाकर रेडियेशन थेरपी का प्रयोग भी किया जा सकता है ।
कीमोथेरपी
कीमोथेरपी को अक्सर प्रारम्भिक हड्डी के कैंसर का इलाज करने के लिए सर्जरी के साथ संयुक्त रूप से दिया जाता है । सर्जरी को सुसाध्य बनाने के लिए सर्जरी के पहले तथा सर्जरी करके प्रमुख ट्यूमर को निकालने के बाद शरीर में अगर कोई कैंसर कोशिकाएं रह गयी हैं तो उनको नष्ट करने के लिए सर्जरी के बाद कीमोथेरपी आम तौर पर दी जाती है ।
ऑसटियोसार्कोमा
एक बार ऊतक का निदान हो जाए तो कीमोथेरपी की सलाह दी जाती है । सर्जरी के पहले और सर्जरी के बाद दो बार कीमोथेरपी दी जाती है । अड्रियामाईसिन, सिसप्लाटिनम, आयफोसफामैड और ईटोपोसाइड ओस्टियोसार्कोमा के लिए असरदार दवाइयाँ हैं ।
ईविंग्स परिवार के ट्यूमर
जैसे ओस्टियोसार्कोमा में पाया जाता है, उसी प्रकार मल्टीएजेंट कीमोथेरपी से कुल उत्तरजीविता में सुधार होता है । आयफोसफामैड, ईटोपोसाइड, विनक्रिसटाईन, एड्रीयामाईसिन, सायक्लोफोसफामैड और एक्टिंनोमाईसिन-डी इस्तमाल किए जाने वाले एजेंट्स हैं । पहले, स्थानीय नियंत्रण का अधिमान्य प्रकार रेडियेशन था पर अब सर्जरी की भूमिका स्थापित की जा रही है । हाल ही में आये रिपोर्ट यह सूचित करते हैं कि रेडियेशन के साथ या रेडियेशन के बगैर सर्जरी और साथ में कीमोथेरपी जोड़ने से रेडियेशन के साथ केवल कीमोथेरपी देने की तुलना में बेहतर स्थानीय नियंत्रण दर पाये जाते हैं ।
स्तन का कैंसर |
स्तन का कैंसर सभी प्रकार के कैंसर में सबसे आम है और विश्वभर की महिलाओं में कैंसर से होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण है, >1.6% मृत्यु के लिए जिम्मेदार है तथा बीमारी से होने वाली मृत्यु संख्या दर निम्न-संसाधन वाले राज्यों में सर्वाधिक है । भारत में स्तन के कैंसर के खतरे पर हाल ही में किए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि 28 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में स्तन का कैंसर होने का खतरा है । यह खतरा ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों में ज्यादा है । शहरी इलाकों में 22 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में यह बीमारी होती है जबकि गावों में 60 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में यह बीमारी होने का खतरा है । भारत में इस बीमारी का अधिक खतरा रखने वाली महिलाओं का औसतन उम्र 43-46 वर्ष है जबकि पश्चिम के देशों में 53-57 वर्ष की महिलाओं को स्तन का कैंसर होने का अधिक खतरा है । |
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खतरे के कारण |
स्तन के कैंसर के खतरे को प्रभावित करने वाले खतरे के तत्वों का वर्गीकरण विस्तृत रूप से परिवर्त्य और अपरिवर्त्य दो तत्वों में किया जाता है । अपरिवर्त्य खतरे के कारण हैं उम्र, लिंग, स्तन के कैंसर से ग्रस्त पहले दर्जे के रिश्तेदार, मासिक धर्म का इतिहास और प्रथम रजस्राव पर उम्र । जबकि परिवर्त्य खतरे के तत्व हैं बीएमआय, पहले प्रसव पर उम्र, बच्चों की संख्या, स्तनपान कराने की उम्र, शराब, आहार और असफल गर्भकाल (गर्भपात) की संख्या । |
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जांच |
जिन महिलाओं को स्तन का कैंसर होने का औसत से अधिक खतरा है, उस स्थिति के लिए उनकी जांच और जेनेटिक या आनुवंशिक टेस्टिंग की जा सकती है । एनएचएस स्तन स्क्रीनिंग कार्यक्रम यह सिफारिश करती है कि 50-70 वर्ष की उम्र की महिलाओं को तीन साल में एक बार अपनी जांच करानी चाहिए । यह बीमारी होने का खतरा रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष रूप से इस स्क्रीनिंग को करने की सलाह दी जाती है, जिसमें एक महत्वपूर्ण खतरा है परिवार का इतिहास । अगर आपके पहले दर्जे के रिश्तेदार (माँ, बहन या बेटी) को स्तन का कैंसर हुआ है तो आपको स्तन का कैंसर होने का खतरा दुगुना या तीन गुना बढ़ जाता है । स्तन के कैंसर से ग्रस्त लगभग 5% महिलायें 2 ज्ञात स्तन कैंसर के वन्शाणु BRCA1 or BRCA2 में म्यूटेशन या उत्परिवर्तन रखते हैं । यदि ऐसी महिला के रिश्तेदारों में भी यह जीन रहती है तो उन महिलाओं को भी अपने जीवनकाल में स्तन का कैंसर होने का 50 से 85% खतरा है । पिछले दशकों में स्तन के कैंसर के बारे में बढती हुई जागरूकता के कारण जांच के लिए मामोग्राफी कराने वाली महिलाओं की गिनती में वृद्धि हुई है जिसके कारण प्रारम्भिक अवस्था में कैंसर की पहचान हो जाती है और मरीज के जीवित रहने के दर में सुधार हुआ है । एक वर्ष में पहचाने जाने वाले कैंसर में से लगभग 20%, जांच या स्क्रीनिंग के दौरान छूट जाते हैं, पर अगले स्क्रीनिंग की अवधि के पहले नैदानिक रूप से व्यक्त या सुस्पष्ट हो जाते हैं (इंटरवल कैंसर) । |
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पथोलोजी |
चूचुक या निप्पल से स्राव का आना, सूजन, एएनडीआय, दुर्दम्य दोष, फायलोडस/सर्कोमास और कार्सिनोमा स्तन की विविध असामान्यताओं में शामिल हैं । अधिकांश स्तन के कैंसर एपीथीलियल ट्यूमर हैं जो वाहिनियों या पालिका की परत पर मौजूद कोशिकाओं से विकसित होते हैं; कम सामान्य हैं सहायक स्ट्रोमा(उदाहरण के लिए, एन्जियोसार्कोमा, प्रारम्भिक स्ट्रोमल सर्कोमास, फायलोडस ट्यूमर के नॉन-एपिथीलियल कैंसर । कैंसर को कार्सिनोमा इन सीटू और इनवेजिव कैंसर दो भागों में विभाजित किया गया है । चूचुक या निप्पल की पेजेट नामक बीमारी एक प्रकार की डकटल कार्सिनोमा इन सीटू है जो चूचुक या निप्पल और अरियोला तक फैलता है और जो आकार में बढ़कर त्वचा की सूजनयुक्त छाला बन जाता है और आक्रामक बन सकता है । स्तन कैंसर की पथोलोजिकल विभिन्नताओं से पूर्वानुमान पर प्रभाव पड़ता है । इनसिटू कैंसर (डीसीआयएस/एलसीआयएस) धीरे बढने वाले, निष्क्रीय ट्यूमर हैं । ऑटोप्सी या शव-परीक्षण के अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि जिन महिलाओं में रोग के लक्षण नहीं होते या दिखते उनमें डीसीआयएस की बीमारी का स्तर .02% से 18.2% है जो इस बात का सूचक है कि कुछ डीसीआयएस महिला के जीवनकाल में प्रकट नहीं होते । इनवेसिव कार्सिनोमा प्रधानत: |
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पथोफिसियोलोजी |
स्तन का कैंसर स्थानीय रूप से शरीर में घुसता है और शुरुआत में क्षेत्रीय लसिका ग्रंथियों, रक्त नलियों या दोनों के जरिये फैलता है । मेटास्टाटिक स्तन का कैंसर शरीर के किसी भी हिस्से पर असर कर सकता है – ज्यादातर फेफड़े, गुर्दे, हड्डी, दिमाग और त्वचा । |
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रोग-लक्षण |
अधिकांश स्तन के कैंसर निम्न रूप में मौजूद रहते हैं :
शारीरिक जांच के दौरान सूजन आसपास के स्तन के ऊतकों से स्पष्ट रूप से अलग महसूस होता है । अधिकांश बढ़ी हुई अवस्था के स्तन कैंसर में पाए जाने वाले लक्षण हैं त्वचा में सॅटॅलाइट नोड्युल्स या छालों के द्वारा छाती की परत या उपरिशायी में सूजन का जम जाना । निष्प्रभ या स्थायी एक्सिलरी लिम्फ नोडस ट्यूमर के फैलने की ओर इशारा करते हैं । इन्फ्लामेट्री या सूजन वाले स्तन के कैंसर में पाए जाने वाले रोग लक्षण हैं विस्तारित या फैला हुआ सूजन और अक्सर सूजन के बिना स्तन के आकार का बढना, और इसकी गति आक्रामक होती है । |
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निदान |
तीन गुना मूल्यांकन या निर्धारण में शामिल है : नैदानिक जांच, रेडियोलोजिकल जांच और पथोलोजिकल सहसंबंध । रेडियोलोजीममोग्राम अल्ट्रासाउंड अक्सर, लम्प या सूजन ममोग्राम पर दृश्य भी नहीं होता या लम्प, ममोग्राम पर दृश्य होता है पर उसकी आकृति अनिश्चित होती है । अगर छाले नैदानिक रूप से संदेहजनक होते हैं और अल्ट्रासोनोग्राफी या एस्पिरेशन द्वारा जांच करने पर पता चलता है कि यह सिस्ट नहीं है तो ममोग्राफ़ी के परिणाम के बावजूद बायोप्सी की सलाह दी जाती है । इस मामले में, ममोग्राम से निदान में बहुत कम मदद मिलती है । इसका मुख्य उपयोग असंदेहजनक कैंसर के लिए कंट्रालेटरल स्तन तथा शेष स्तन की स्क्रीनिंग करना है लम्प एक बेनाइन काल्सिफैंग फिब्रोअडिनोमा, मिश्रित रेडीयोग्राफिक डेंसिटी हमार्तोमा या फेट नेक्रोसिस या एक लिपोमा की एक आदर्श उपस्थिति रख सकता है । इन छालों की मौजूदगी का प्रयोग बायोप्सी से बचने के लिए किया जा सकता है, ताकि इन मामलों में, नैदानिक ममोग्राम बहुत लाभदायक साबित हो । लम्प को, स्तन के कैंसर का एक परम्परागत ढांचा आ सकता है और बायोप्सी स्पष्ट रूप से इंगित हे । इस मामले में, बायोप्सी करने की आवश्यकता है इस बात को स्पष्ट करने वाले ममोग्राफी के निष्कर्ष से निदान में विलंब होने से बचा जा सकता है । |
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मेग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग
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एक ऐसा संदेहजनक मामोग्राफिक छाला जिसे सीबीई या अल्ट्रासोनोग्राफी द्वारा पहचाना नहीं जा सकता उसका पता लगाने के लिए एमआरआय उपयोगी है । यह विशेष रूप से उन युवा महिलाओं में उपयोगी है जिनके घने स्तन हों, महिलाएं जिनमें इम्प्लांट किया गया है , महिलाएं जिनके स्तन का पहले ऑपरेशन हुआ है या जिन्हें पुनरावृत्त छाले हुए हों और जिनके लिए ममोग्राफ़ी सठीक न हो । |
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पथोलोजी |
नीडल बायोप्सी /ऍफ़एनएसी “अनिर्धारित” या “अधिक-खतरे” वाले सख्त छालों के लिए सायटोलोजी या हिस्टोलोजी द्वारा दुर्दम्य की पुष्टि न्यूनतम आवश्यकता है । रोगात्मक पुष्टि हेतु ऊतक प्राप्त करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले विविध प्रकार हैं फाइन-नीडल एस्पिरेशन/ट्रू कट/कोर बायोप्सी/सर्जरी द्वारा काट/चीरा करके बायोप्सी और अस्पृश्य रोग के लिए त्वचा प्रवेशी स्तन बायोप्सी । |
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स्तर निर्धारण |
टीएनएम स्टेजिंग को स्तन के कैंसर के स्तर का निर्धारण करने के लिए परम्परागत रूप से इस्तमाल किया जाता है । मरीजों को नैदानिक रूप से नीचे दिए गए में से किसी एक वर्ग में रखा जाता है |
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इलाजसाक्ष्य आधारित दिशानिर्देशसर्जरी, कीमोथेरपी, रेडियोथेरपी और लक्ष्य केन्द्रित थेरपी सभी का बहुआयामी उपयोग करके स्तन के कैंसर का इलाज किया जा सकता है । ट्यूमर के स्तर के अनुसार इलाज के विकल्प में बदलाव आता है । स्तन के कैंसर पर कई क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं ; टीएमएच इनमें से कई ट्रायल्स में शामिल है । |
मरीजों के लिए जानकारी |
स्तन का कैंसर भारत की महिलाओं में पाये जाने वाले सबसे सामान्य कैंसरों में से एक है । अगर आरंभिक अवस्था में ही इस बीमारी की पहचान हो जाए तो यह ठीक होने वाले कैंसरों में से एक कैंसर है । किसी भी महिला को स्तन का कैंसर होने का खौफ रहेगा । कैंसर की बीमारी से मरीज के परिवार को जिस तरह के मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती । अगर आपको या आपकी पहचान में किसी को स्तन के कैंसर की बीमारी की पहचान हुई है तो यह जरूरी है कि आप इस बीमारी को समझे, क्योंकि अज्ञान मिथ्याओं को जन्म देता है । फिर हमें न सिर्फ ‘कैंसर’ की बीमारी से लड़ना है बल्कि ‘मिथ्याओं’ से भी लड़ना है । |
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गर्भाशय मुख का कैंसर सर्विक्स यानि गर्भाशय के द्वार का कैंसर है, जो योनि के ऊपरी सतह तक फैलता है । प्रभावी स्क्रीनिंग, जिसके कारण गर्भाशय की कैंसर पूर्व अवस्था तथा गर्भाशय के कैंसर की जल्द पहचान होती है के कारण अधिकांश रोग ठीक हो सकते हैं ।
1950 में जोर्ज पपानिकोलावु द्वारा विकसित एक वजाईनल या योनि के स्मीयर टेस्ट (जिसे सामान्यत: “पप स्मीयर” कहा जाता है) से गर्भाशय मुख के कैंसर से होने वाली मृत्यु में काफी कमी आई है – प्रति वर्ष 35,000 से अधिक से आज की तारीख में प्रति वर्ष 4000 ।
धीरे बढ़ने वाला, चिकित्सीय कैंसर
गर्भाशय मुख का कैंसर सामान्यत: कई वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ता है । वास्तविक कैंसर की कोशिकायें विकसित होने के पहले, गर्भाशय के मुख के ऊतकों में बदलाव होते हैं – जिसे डिसप्लेसिया या कैंसर पूर्व अवस्था कहते हैं – जिसे एक पथोलोजिस्ट पप स्मीयर में पहचान सकता है । ये बदलाव, हल्के डिसप्लेसिया या सरवाईकल इंट्राएपिथीलियल नियोप्लेसिया (CIN1) से लेकर मध्यम स्तर के (CIN2) से लेकर उच्च-दर्जे के छाले (CIN3) तक हो सकते हैं । ये संक्रमणरहित कैंसर कोशिकाओं जैसे भी दिख सकते हैं, जिसे कार्सिनोमा इन सीटू भी कहते हैं ।
अगर इस अवस्था का इलाज नहीं किया जाता है तो इस कैंसर पूर्व अवस्था में, संक्रमण करने और कैंसरजन्य होने की प्रवृत्ति रहती है । एक बार अगर ये गर्भाशय की सीमा के आगे फैल जाये तो, वे ऊतकों को, योनि या गर्भाशय में अधिक गहराई से संक्रमण कर सकती हैं, और अंतत: शरीर के अन्य हिस्सों में मेटास्टासाइज हो सकता है ।
सामान्यत: दो मुख्य प्रकार के गर्भाशय मुख के कैंसर होते हैं :
कैंसर के जिस प्रकार में उपरोक्त दोनों प्रकार के कैंसर के लक्षण होते हैं उन्हें मिक्सड या अडिनोस्कवेमस कार्सिनोमा कहते हैं ।
गर्भाशय मुख के कैंसर के लिए सबसे महत्वपूर्ण खतरे का तत्व है ह्युमन पपिलोमावाईरस (HPV), जो कि सेक्स के दौरान अंतरित हो सकता है ।
दो से अधिक दशकों से यह ज्ञात है कि पपिलोमावाईरस से सरवाईकल डिसप्लेसिया, या कैंसर पूर्व अवस्था हो सकती है । हाल ही मे, इन वाईरसेस में पाए जाने वाले डीएनए सभी गर्भाशय के स्क्वेमस सेल कार्सिनोमा में पाए जाते हैं (गर्भाशय मुख के कैंसर का सबसे सामान्य प्रकार)।
HPV संक्रमण का खतरा रखने वाले निम्न खतरे के कारकों के वर्जन से, महिलायें गर्भाशय का कैंसर होने की उनकी सम्भावना को कम कर सकते हैं :
जिन महिलाओं में खतरे के ये तत्व नहीं होते उन्हें गर्भाशय मुख का कैंसर बहुत विरले होता है । अपने लैंगिक साथी को कोंडम का इस्तमाल करने का आग्रह करके यद्यपि सभी महिलायें इस बीमारी से स्वयं का बचाव कर सकती हैं, पर कोंडम एचपीवी संक्रमण से सम्पूर्ण सुरक्षा नहीं देता क्योंकि यह वैरस शरीर के किसी भी संक्रमित हिस्से के संपर्क में आने से फैल सकता है जैसा एचआयवी में नहीं होता ।
गर्भाशय मुख का कैंसर, ख़ास कर अपने प्रारम्भिक स्तर पर, अक्सर कोई रोग लक्षण नहीं दिखाता । इसलिए पप टेस्ट से नियमित स्क्रीनिंग करके अपने डॉक्टर से मिलना बहुत जरूरी है ।
जब रोग लक्षण होते हैं तो, निम्न हो सकते हैं :
ये रोग लक्षण गर्भाशय मुख के कैंसर से हो सकते हैं या कई अन्य गंभीर परिस्थितियों से हो सकते हैं, और किसी वैद्यकीय चिकित्सक द्वारा इसका तत्काल मूल्यांकन किया जाना चाहिए ।
गर्भाशय मुख के कैंसर या डिसप्लेसिया (कैंसर पूर्व अवस्था) होने की संभावना का पता लगाने के लिए प़प टेस्ट किया जाता है ।
बायोप्सी
यदि पप टेस्ट में कोई असामान्यता नजर आती है तो, आपके डॉक्टर एक बायोप्सी (माईक्रोस्कोपिक जांच के लिए गर्भाशय से ऊतक निकालकर) करेंगे । असामान्य हिस्से का पता लगाने के लिए एक गायनेकोलोजिस्ट अक्सर एक कोलपोस्कॉप (आवर्धक दूरबीन से जुडी जांच की नली) का प्रयोग करेंगे और गर्भाशय मुख के सतही हिस्से से एक छोटा सा हिस्सा निकालेंगे, और क्या इसमें कैंसर की कोशिकायें या कैंसर पूर्व अवस्था की कोशिकायें मौजूद हैं यह जानने के लिए एक पथोलोजिस्ट इसकी जांच करेंगे । वे एक शिलर टेस्ट भी करेंगे, जिसमें आयोडीन के घोल से गर्भाशय का लेप किया जाता है । आयोडीन से स्वस्थ कोशिकायें भूरे रंग की हो जाती हैं, जबकि असामान्य कोशिकायें सफ़ेद या पीली नजर आती हैं ।
कोण बायोप्सी
अगर निदान स्पष्ट नहीं है तो, सर्जन कोण या शंकु के आकार का थोड़ा और बड़ा ऊतक निकालेंगे (जिसे कोण बायोप्सी कहते हैं)। टाटा स्मारक केंद्र में कोण बायोप्सी अक्सर लूप एक्सीशन द्वारा किया जाता है, जिसमें सैंपल के ऊतक को निकालने के लिए एक पतले वायर लूप में से बिजली का करेंट पास किया जाता है । लूप एक्सीशन करने के लिए लोकल एनस्थेशिया देकर केवल 10 मिनट का समय लगता है । कोण बायोप्सी भी एक प्रकार का इलाज है, तथा कई प्रकार के कैंसर पूर्व स्थितियों और प्रारम्भिक कैंसर को पूरी तरह समाप्त कर सकता है । इस तकनीक से, बिना और इलाज प्रदान किए, 90 प्रतिशत से ज्यादा गर्भाशय के कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है ।
सायटोस्कोपी और अन्य इमेजिंग टेस्ट
अगर आपके डॉक्टर को यह संदेह होता है कि कैंसर गर्भाशय से आगे फैल चुका है तो आपकी सायटोस्कोपी (एक लाईट युक्त ट्यूब का इस्तमाल करके आपके मूत्राशय की जांच करेंगे), प्रोकटोस्कोपी (मलाशय की जांच), छाती का एक्स-रे, या अन्य इमेजिंग टेस्ट – जैसे मेटास्टाटिक रोग का पता लगाने के लिए पेट और श्रोणी का कंप्युटराजड़ टोमोग्राफी स्कैन (सीटी स्कैन), या बीमारी किस हद तक फ़ैली है इस बात का पता लगाने के लिए श्रोणी का मग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग स्कैन (एमआरआय स्कैन) ।
गर्भाशय मुख के कैंसर का इलाज करने के विकल्प मुख्यत: कैंसर का आकार, संक्रमण कितनी गहराई तक हुआ है, और क्या कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैला है - बीमारी की इन अवस्थाओं पर निर्भर है । सर्जरी और रेडियेशन थेरपी एवं कीमोथेरपी का मिश्रण इलाज के प्राथमिक रूप हैं ।
कार्सिनोमा इन सीटू
ये कैंसर पूर्ववर्ती हैं और गर्भाशय को बचाकर परम्परागत रूप से इनका इलाज किया जा सकता है । इलाज के विकल्प हैं
प्रारम्भिक गर्भाशय मुख का कैन्सर (स्टेज I-IIA)
प्रारम्भिक गर्भाशय मुख के कैंसर जो गर्भाशय तक सीमित हैं, के लिए सर्जरी के विकल्प हैं - कभी-कभी गर्भाशय के बगल के ऊतक के साथ हिस्टरेक्टोमी (गर्भाशय को निकालना) । श्रोणि से लिम्फ नोडस भी निकाले जाते हैं और कैंसर कोशिकाओं की उपस्थिति के लिए उनकी जांच की जाती है । अगर कैंसर “उच्च खतरे के तत्वों से जुड़े हैं – जैसे श्रोणी के लिम्फ नोड्स में भी होना, गर्भाशय की लिम्फ नलियों या रक्त वाहिकाओं का संक्रमण, या गर्भाशय से लगे ऊतक में भी होना – डॉक्टर्स कीमोथेरपी के साथ रेडियेशन थेरपी मिलाकर लेने की
उच्च स्तर का गर्भाशय मुख का कैंसर (स्तर IIB-IVA)
अगर गर्भाशय मुख का कैंसर गर्भाशय से भी आगे आस-पास के श्रोणी के ऊतकों में फैल गया है तो सामान्य तौर पर केवल सर्जरी एक असरदार इलाज नहीं है । इस स्तर के संक्रामक कैंसर के मरीजों का इलाज परम्परागत रूप से या तो सिर्फ रेडियेशन थेरपी (कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने तथा ट्यूमर के आकार को घटाने के लिए एक्स-रे या अन्य तीव्र ऊर्जा युक्त तरंगों का प्रयोग) देकर किया जाता है या सर्जरी के साथ-साथ रेडियेशन थेरपी देकर इलाज किया जाता है ।
पर, पिछले कुछ वर्षों में उच्च स्तर के गर्भाशय मुख के कैंसर के इलाज में एक बड़ा बदलाव हुआ है । बड़े क्लिनिकल ट्रायल्स के परिणामों के आधार पर, अब, आस-पास के भागों में फैले गर्भाशय मुख के कैंसर के लिए मानक इलाज, कीमोथेरपी के साथ रेडियेशन थेरपी मिलाकर देना है । रेडियेशन थेरपी बाहर से और/या शरीर के अंदर से (गर्भाशय के आसपास के भागों में रेडियोसक्रीय पदार्थ पहुंचाने के लिए एक इम्प्लांट लगाकर) दी जा सकती है ।
स्तर IVB तथा पुनरावृत्त गर्भाशय मुख का कैंसर
जिन महिलाओं का कैंसर श्रोणी के आगे फैल जाता है (उदाहरण के लिए फेफड़े या गुर्दे में) या जिन्हें रोग की पुनरावृत्ति होती है, उन्हें इलाज देने का उद्देश्य है मरीज के जीवन स्तर को सुधारने के लिए कैंसर से जुड़े रोग लक्षणों को कम करना, और मरीज के अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना को बढ़ाना । इन मरीजों के लिए इलाज का प्रारम्भिक प्रकार कीमोथेरपी है, और इन महिलाओं का इलाज करने के लिए कई दवाइयाँ उपलब्ध हैं ।
जिन महिलाओं की श्रोणी में इस बीमारी की पुनरावृत्ति होती है, उनके लिए, विस्तृत सर्जरी इलाज का एकमात्र विकल्प हो सकता है और इसके लिए एक अत्यंत अनुभवशाली बहुआयामी टीम की आवश्यकता है ।
कोलोरेक्टल कैंसर |
कोलोरेक्टल कैंसर को काबू में करने तथा उसका इलाज करने में निवारण और शीघ्र पहचान मुख्य तत्व हैं । वास्तव में, फेफड़े के कैंसर के बाद कोलोरेक्टल कैंसर दूसरा ऐसा कैंसर है जिसका सबसे ज्यादा निवारण हो सकता है । जब प्रारम्भिक अवस्था में ही कैंसर का पता चलता है तो शुरुआती इलाज देने से अक्सर उत्तम परिणाम नजर आते हैं । बड़ी आंतडी और मलाशय या रेक्टम में होने वाला कैंसर कोलोरेक्टल कैंसर है । कोलोन एक पेशीय नली है जो लगभग 5 फीट लंबा होता है । यह खाने में से पानी और पोषक तत्वों को सोख लेता है । मलाशय जोकि पाचन नली का नीचे का 6 इंच का हिस्सा है, मल को समेटकर रखने का काम करता है जो बाद में मलद्वार से शरीर के बाहर निकल जाता है । बहुत से लोगों की यह धारणा है कि कोलोरेक्टल कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो सामान्य रूप से पुरुषों को होती है, पर यह बीमारी महिलाओं में कुछ अधिक सामान्य होती है । आज, एक औसतन व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना 20 में से 1 है । कोलोरेक्टल कैंसर कैसे होता है ? बृहदान्त्र या कोलन 4 भागों में बटा है : एस्सन्डिंग कोलोन, ट्रांस्वर्स कोलोन, डिस्सेंडिंग कोलोन और सिग्मोइड कोलन । अधिकांश कोलोरेक्टल कैंसर सिग्मोइड कोलन – में होते हैं – मलाशय का ठीक ऊपरी भाग । यह बीमारी सामान्यत: सबसे अंदर की परत में आरम्भ होती है और कोलन तथा मलाशय, ऊतक के जिन परतों से बनता है उसके कुछ या सभी परतों को बेधकर फैलता है । बीमारी कौन से स्तर की है यह इस बात पर निर्भर है कि कैंसर किस हद है । अक्सर, ज्यादातर कोलोरेक्टल के कैंसर की शुरुवात, पोलिप्स नामक छोटे सुदम वर्धन या ग्रोथ के रूप में होती है और कई वर्षों के अंतराल में यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती हैं । इन पोलिप्स को दुर्दम्य होने से पहले, आरम्भ में ही निकालना, कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव का प्रभावी तरीका है । |
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रोग लक्षण |
कोलोरेक्टल कैंसर कभी कबार बिना किसी रोग लक्षण के हो जाता है । इसलिए, इस कैंसर की प्रारम्भिक अवस्था में, जब इस बीमारी के ठीक होने की अधिक संभावना होती है उस समय स्क्रीनिंग टेस्ट (जैसे कोलोनोस्कोपी और मल में रक्त के आने के कारण जानने हेतु एक टेस्ट) करने की सिफारिश की जाती है । पर जब रोग लक्षण होते हैं तो निम्न हो सकते हैं :
ऊपर बताये गए में से कुछ रोग लक्षण अन्य कारणों से भी हो सकते हैं । पर अगर ये रोग लक्षण बने रहते हैं तो आपको अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए । मलाशय से रक्त स्राव या मल में रक्त के आने की स्थिति में इस बात को आपके डॉक्टर के ध्यान में लाना चाहिए । |
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जांच और निदान |
कोलोरेक्टल कैंसर का इलाज करने का सबसे उत्तम तरीका है इस बीमारी को होने से रोकना । प्रारम्भिक निदान सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका है नियमित जांच, और बीमारी का जल्द निदान, इसके ठीक होने की सर्वाधिक संभावना प्रदान करती है । स्क्रीनिंग तथा नैदानिक जांच नीचे दी गयी विविध प्रक्रियाओं में से किसी एक या एक से अधिक प्रक्रिया द्वारा कोलोरेक्टल कैंसर की जांच और निदान की जा सकती है :
वर्चुयल कोलोनोस्कोपी वर्चुयल कोलोनोस्कोपी एक नया तकनीक है जो 3-डी चित्र या इमेज तैयार करने के लिए सीटी स्कैन का प्रयोग करती है तथा अंतड़ी की जांच करने के लिए इस चित्र या इमेज का उपयोग किया जा सकता है । इस समय , यह केवल अनुसंधान का एक उपकरण ही है, और आम तौर पर उपलब्ध नहीं होता है । इस बात को ध्यान में रखना भी जरूरी है कि, यद्यपि यह एक आशाजनक तकनीक है, फिर भी जब कोई असामान्यता नजर आती है तो इस तकनीक के द्वारा बायोप्सी या पोलिप को निकाला नहीं जा सकता । नैदानिक जांचों के बारे में, अधिक जानकारी के लिए, स्टेजिंग या स्तर निर्धारण का सन्दर्भ लें । स्क्रीनिंग संबंधी दिशानिर्देश अगर आपको आपके व्यक्तिगत या परिवार के मेडिकल हिस्ट्री के कारण कोलोरेक्टल कैंसर होने का अधिक खतरा नहीं है तो, 50 वर्ष की आयु से हम निम्न जांच करने की सिफारिश करते हैं :
अगर आपको आपके व्यक्तिगत या परिवार के मेडिकल हिस्ट्री के कारण कोलोरेक्टल कैंसर होने का अधिक खतरा है तो, 40 वर्ष की आयु से या यदि आनुवंशिक नॉन-पोलिपोसिस कोलोरेक्टल कैंसर (एचएनपीसीसी) होने का संदेह हो तो हर 5 वर्ष में एक बार कोलोनोस्कोपी करानी चाहिए । 50 वर्ष की उम्र से पहले जिन मरीजों को कोलोरेक्टल कैंसर हुआ था ऐसे मरीजों के, पहले-दर्जे के, प्रत्यक्ष रिश्तेदारों को, इस बीमारी के लिए निदान किए गए मरीज की सठीक उम्र जानकर उससे 10 से 20 वर्ष पूर्व के उम्र से ही कोलोरेक्टल के कैन्सर के लिए अपनी स्क्रीनिंग कराने की शुरुआत करनी चाहिए । उदाहरण के लिए, अगर आपके पिताजी को 48 वर्ष की उम्र में कोलोरेक्टल कैंसर होने का निदान किया जाता है तो, आपको 28 और 38 की उम्र से कोलोरेक्टल कैंसर के लिए खुद की स्क्रीनिंग करानी चाहिए । |
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स्टेजिंग |
अगर जांच में यह पता लगता है कि आपको कोलोरेक्टल कैंसर है तो यह बीमारी किस हद तक फ़ैली है इसका पता लगाने के लिए अतिरिक्त जांच किए जाते हैं और इस प्रक्रिया को स्टेजिंग कहते हैं । आपके लिए इलाज का कौनसा तरीका सबसे उचित है इसका निर्णय करने के लिए यह जानना जरूरी है कि आपका कैंसर किस अवस्था में है । कोलोरेक्टल कैंसर के स्तर का निर्धारण करने के लिए नियमित रूप से निम्न जांच किए जाते हैं :
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इलाज |
The choice of treatment for colorectal cancer depends on the stage of the disease -- that is, how large the tumor has grown, how deeply it has invaded the layers of the colon or rectum, and whether it has spread to other organs (most commonly the liver), lymph nodes, or other parts of the body. Treatment options include surgery, radiation therapy, chemotherapy, and combinations of these approaches. |
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पेट का कैंसर |
पेट का कैंसर – जिसे गैस्ट्रिक कैंसर भी कहते हैं – होने से पहले सामान्यत: पेट की परत में कैंसर पूर्व बदलाव होते हैं, पर इन बदलावों से रोग लक्षण बहुत विरले होते हैं । अक्सर, जब तक पेट का कैंसर बहुत बढ़ न जाए तब तक इस बीमारी के रोग लक्ष्ण नहीं होते, इसलिए इस बीमारी की प्रारम्भिक अवस्था में अक्सर इसकी पहचान नहीं होती है । अधिकांश पेट के कैंसर (90 से 95 प्रतिशत) अडिनोकार्सिनोमा के वर्ग में आते हैं । स्कवेमस सेल कार्सिनोमा, लिम्फोमा, स्ट्रोमल ट्यूमर्स, (मांसपेशी या पेट की भित्ति से जुड़े ऊतक), और कार्सिनोइड ट्यूमर (पेट की होरमोन उत्पादन कोशिकाओं में होने वाला कैंसर) पेट के कैंसर के अन्य प्रकार हैं । |
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खतरे के तत्व |
निम्न तत्व पेट के कैंसर के खतरे को बढाते हैं :
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रोग लक्षण |
जब पेट के कैंसर के रोग लक्षण होते हैं तो उनमें शामिल है :
पेट के कैंसर की अधिक प्रगत अवस्था में, एक मरीज को निम्न रोग-लक्षण हो सकते हैं :
सुदम बीमारियाँ जैसे सामान्य अपचन या पेट में वायरस के आने से भी ऊपर बताये गए रोग लक्षण हो सकते हैं । पर, यदि लम्बे समय तक ये रोग लक्षण बने रहते हैं तो आपको अपने डॉक्टर को दिखाना चाहिए । |
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निदान |
अगर आपके डॉक्टर को इस बात का संदेह होता है कि आपको पेट का कैंसर हो सकता है तो, आप अपने जठरांत्र के ऊपरी हिस्से का बेरियम एक्स-रे करा सकते हैं । इस जांच के लिए, आपको एक द्रव्य पीने के लिए कहा जाएगा जिसमें बेरियम मिला हुआ होता है, जिससे एक्स-रे के दौरान आपके पेट के अंदर का इमेज अधिक साफ़ और सरलता से दिखता है । यह जांच डॉक्टर के कार्यालय में या अस्पताल के रेडियोलोजी विभाग में किया जा सकता है । गैस्ट्रोस्कोप – एक पतली, प्रकाशित नली के छोर में लगाया हुआ कैमरा आपके मुह के अंदर घुसाई जाती है और आपके पेट में पहुंचाई जाती है (जिसे अप्पर एंडोस्कोपी भी कहा जाता है) । नली के छोर पर लगाये गए कैमरा की मदद से आपके डॉक्टर आपके पेट के अंदर का बिंब देख सकते हैं । कैंसर की कोशिकाओं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए आपके डॉक्टर ऊतक के छोटे नमूने निकालेंगे । (इस जांच के दौरान आपको कोई तकलीफ न हो यह सुनिश्चित करने के लिए आपके गले के अंदर अनसथेटिक का एक स्प्रे या कोई अन्य दवाई दी जाएगी) । पेट के कैंसर का निदान करने के लिए एक तीसरे, नवीन तकनीक को एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड कहा जाता है । गैस्ट्रोस्कोपी के सामान, एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड मुंह के अंदर और नीचे पेट में घुसाए जाने वाले एक पतले ट्यूब पर निर्भर करता है । नली के छोर पर एक छोटी अल्ट्रासाउंड प्रोब है जो पेट की भित्ती में से ध्वनि की तरंगों को उछालता है । पेट की परत, आसपास के अवयव और आसपास के लिम्फ नोड्स तक कैंसर किस हद तक फैला है यह पता लगाने के लिए यह जांच जरूरी है –इस प्रक्रिया को स्टेजिंग कहते है । स्टेजिंग के एक अन्य तकनीक को लाप्रोस्कोपी कहते हैं । इस प्रक्रिया के अंतर्गत आपके पेट के अंदर का चित्र देखने के लिए एक नली जिसके छोर पर कैमरा लगा हुआ है के द्वारा मायनर या छोटी सी सर्जरी की जाती है । डॉक्टर्स आपके पेट की बाहरी भित्ती को देख सकते हैं, लिम्फ नोडस की जांच कर सकते हैं और क्या कैंसर पेट के अन्य अवयवों में फैला है यह जानने के लिए उन अवयवों के सतह का मूल्यांकन कर सकते हैं । इन नैदानिक जांचों के अतिरिक्त, आपके डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूछेंगे, एक शारीरिक जांच करेंगे और खून के जांच जैसे प्रयोगशाला में किए जाने वाले अध्ययन करने के लिए कहेंगे । |
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इलाज |
पेट के कैंसर के लिए कौन सा इलाज दिया जाए इसका चयन इस बात पर निर्भर है कि बीमारी किस स्तर की है – अर्थात, ट्यूमर का आकार कितना बढ़ गया है, पेट की परत में कितनी गहराई तक संक्रमण किया है, और क्या यह कैंसर आसपास के अवयवों, लसिका ग्रंथियों, या शरीर के अन्य भागों में फैल गया है । हाल ही में किए गए जांच पेट के कैंसर के लिए त्रिशूलीय आक्रमण की सलाह देते हैं – ट्यूमर के अधिकांश भाग को निकालने के लिए सर्जरी करना तथा कैंसर को फैलने से रोकने के लिए कीमोथेरपी और रेडियेशन थेरपी देने से – पेट के कैंसर के मरीज बेहतर रूप से ठीक हो सकते हैं । यह अनुमान किया जाता है कि इलाज का यह सम्मिलित रूप पेट के कैंसर के मरीजों के लिए मानक इलाज हो जाएगा । सर्जरी पेट के कैंसर के लिए इलाज का सबसे सामान्य रूप सर्जरी है । अगर स्टेजिंग या स्तर निर्धारण के परिणाम यह सूचित करते हैं कि सर्जरी करने से आपको फायदा होगा तो, कैंसर को निकालने के लिए आपके डॉक्टर नीचे दिए गए में से कोई एक ऑपरेशन करेंगे :
कीमोथेरपी कीमोथेरपी – कैंसर को नष्ट करने वाली दवाईयों द्वारा इलाज – पेट के कैंसर का इलाज करने के लिए दूसरा विकल्प है । कीमोथेरपी ऐसे मरीजों को दी जा सकती है जिनमें कैंसर ने पेट की भित्ति की परत, आसपास की लसिका ग्रंथि तथा आसपास के अवयवों पर संक्रमण किया है । ट्यूमर के आकार को घटाने या कम करने के लिए सर्जरी(जिसे नियो-एड्जुवेंट थेरपी कहते हैं) के पहले कीमोथेरपी दी जा सकती है –या यदि कैंसर की कोशिकायें शेष रह गयी हों तो उनको नष्ट करने के लिए सर्जरी के बाद दी जा सकती है (एड्जुवेंट थेरपी) । क्लिनिकल ट्रायल्स में इन विकल्पों का मूल्यांकन किया जा रहा है । जब केवल कीमोथेरपी दी जाती है या रेडियेशन थेरपी के साथ दी जाती है, तो पेट के कैंसर के रोग लक्षणों को कम करने या कैंसर की पुनरावृत्ति में विलंब करने में तथा विशेषकर कुछ ऐसे मरीज जिनको हुए कैंसर को सर्जरी द्वारा पूरी तरह निकाला नहीं जा सकता है उनकी आयु को बढाने में भी कीमोथेरपी उपयोगी है । 5-फ्लुरोयूरासिल और सिस्प्लेटिन पेट के कैंसर का इलाज करने के लिए आम तौर पर दी जाने वाली दवाइयां हैं; अन्य दवाईयाँ (पाक्लिटाक्सेल, डोसेटाक्सेल, और इरीनोटेकेन) तथा परम्परागत दवाइयों के नए सम्मिश्रणों पर अभी जांच की जा रही है । कुछ दवाइयाँ अंत:शिरा (नस के द्वारा) से दी जाती है, जबकि कुछ अन्य दवाइयाँ इंट्रापेरीटोनियल्ली (सीधे उदरीय गुहिका में दी जाती हैं) दी जाती हैं। रेडियेशन थेरपी उदर या पेट के कैंसर के इलाज के लिए रेडियेशन थेरपी को सामान्यत: कीमोथेरपी के सम्मिश्रण में दिया जाता है । नए अध्ययनों से पता चला है कि उदर या पेट के कैंसर के बहुत से मरीजों के लिए सर्जरी के बाद रेडियेशन थेरपी और कीमोथेरपी का सम्मिश्रण देने से केवल सर्जरी करने की तुलना में मरीज के जीवित रहने की बेहतर संभावना है । |
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सिर एवं गर्दन का कैंसर |
“सिर एवं गर्दन का कैंसर” पद में विविध प्रकार के ट्यूमर सम्मिलित हैं जो नाक के मार्ग, साईनस, मुँह, गला, स्वरयंत्र, निगलने के मार्ग, लार-ग्रंथि, और थाईरोइड ग्रंथि सहित सिर एवं गर्दन के विविध हिस्सों में होते हैं । सिर की खाल, चेहरे, और या गर्दन पर होने वाले त्वचा के कैंसर भी सिर एवं गर्दन के कैंसर के अंतर्गत माने जा सकते हैं । प्रति वर्ष, लगभग 60,000 अमरीकियों में सिर या गर्दन के कैंसर का निदान होता है (इस भाग में होने वाले त्वचा के कैंसर इसमें शामिल न करते हुए) । इनमें से अधिकांश कैंसर का निवारण संभव है । सिर एवं गर्दन का कैंसर किसी को भी हो सकता है, पर जो लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं (सिगरेट, सिगार, पाइप और धुँआरहित तंबाकू इसमें शामिल है) या अत्यधिक मात्रा में मद्यपान करते हैं उन्हें औरों की तुलना में यह बीमारी होने की संभावना अधिक है । |
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सिर एवं गर्दन के कैंसर के प्रकार |
सिर एवं गले के कैंसर के विविध प्रकार होते हैं । इनमें से बहुत से कैंसर के विवरण नीचे दिए गए हैं । अधिकांश सिर एवं गर्दन के कैंसर को स्कवेमस सेल कार्सिनोमा कहते हैं, क्योंकि इनकी शुरुआत सपाट स्कवेमस कोशिकाओं में होती है जो शरीर के कई भागों में एक पतली बाहरी परत बनाते हैं । जब कैंसर, कोशिकाओं की उस परत तक सीमित रहती है तो उसे कार्सिनोमा इन सीटू कह सकते हैं । जब कैंसर उस परत से आगे बढ़ जाता है और ऊतकों में गहराई तक फैल जाता है तो उस कैंसर को इनवेसिव स्कवेमस सेल कार्सिनोमा कह सकते हैं । जब कैंसर, ग्रंथि की कोशिकाओं में होते हैं जैसे लाला-ग्रंथि तो उन्हें अडिनोकार्सिनोमा कहते हैं ।
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रोग लक्षण |
नीचे सिर एवं गले के कैंसर के कुछ रोग लक्षण और चेतावनी के चिन्ह दिए गए हैं । इनमें से बहुत से रोग लक्षण अन्य, कैंसर-रहित अवस्थाओं में भी हो सकते हैं । अगर आपको इनमें से कोई तकलीफ होती है तो अपने डॉक्टर को दिखायें ।
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निदान |
हमारे डॉक्टर्स विविध प्रकार की जांचों में से कोई जांच करेंगे जो सिर एवं गर्दन के कैंसर का निश्चित निदान करने में तथा कैंसर किस स्तर का है, या कैंसर कितना बढ़ा या फैल गया है यह तय करने में मदद कर सकते हैं । शारीरिक जांच और इतिहास पहले, डॉक्टर या नर्स सभी रोग लक्षण और खतरे के कारणों को नोट करते हुए पूरी मेडिकल हिस्ट्री पूछेंगे । फिर आपके सिर एवं गले के हिस्से की और आपके मुंह तथा गले के अंदर भी ठीक से जांच की जाएगी, और जांच के दौरान डॉक्टर किसी प्रकार की असमानता को महसूस करने या जानने का प्रयास करेंगे । एंडोस्कोपी सिर या गर्दन के जिन हिस्सों की जांच करना मुश्किल होता है उन भागों की जांच करने के लिए डॉक्टर आईने और लाइट्स का उपयोग करेंगे तथा जो भाग कम सुगम हैं उन भागों की जांच करने के लिए एक लचीले , प्रकाशित ट्यूब या नली का भी उपयोग कर सकते हैं । नली या ट्यूब को नाक या मुंह में से घुसाया जाता है; जांच को अधिक आरामदायक बनाने के लिए एक अनस्थेटिक या बेहोश करने वाली स्प्रे का उपयोग किया जा सकता हैं । गर्दन के किस हिस्से की जांच की जा रही है इसके अनुसार इस जांच को नेसोफारिंगोस्कोपी, फारिंगोस्कोपी, या लारिनगोस्कोपी कहा जाता है । कभी-कबार, मरीज को जनरल अनस्थेसिया देकर इस प्रकार की जांच की जाती है ताकि बहुत पक्की जांच की जा सके, इस जांच को पनेनडॉस्कोपी कहते हैं । इमेजिंग टेस्ट इमेजिंग प्रक्रियाएं जैसे सीटी या कॉमप्युटेड टोमोग्राफिक स्कैन (एक विशेष प्रकार का एक्स-रे), एक एमआरआय या मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेज स्कैन (इसमें चित्र निकालने के लिए चुम्बकीय लहरों का उपयोग किया जाता है), या एक अल्ट्रासाउंड जांच(इसमें चित्र निकालने के लिए ध्वनी तरंगों का उपयोग किया जाता है ) के साथ-साथ kkडॉक्टर कई अन्य टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं । टाटा स्मारक केंद्र में, सिर एवं गर्दन के कैंसर के निदान में मदद के लिए डॉक्टर्स पेट स्कैन(पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी) का भी उपयोग कर सकते हैं । आजकल, हम इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या पेट स्कैन गर्दन तथा शरीर के अन्य हिस्सों की लसिका ग्रंथियों में, कैंसर के फैलने को पहचानने की क्षमता में सुधार ला सकता है । अन्य संभाव्य जांचों में पनोरेक्स (जबड़ों का किया जाने वाला एक विशेष प्रकार का एक्स-रे), बेरियम स्वालो, दांतों का एक्स-रे, छाती का एक्स-रे, और एक रेड़ियोन्युक्लिआयड हड्डीयों का स्कैन शामिल है । बायोप्सी अगर किसी भाग में बीमारी के होने की शंका होती है, तो डॉक्टर बायोप्सी कर सकते हैं: स्काल्पेल या सुई से वे ऊतक का एक छोटा-सा हिस्सा निकालेंगे और माईक्रोस्कोप में से जांच करने के लिए ऊतक के उस भाग को लैब में भेजेंगे । बायोप्सी, अक्सर, मरीज को जनरल अनस्थेसिया देकर की जाती है । |
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इलाज |
अगर प्रारंभिक अवस्था में पहचाने जायें तो सिर एवं गर्दन के हिस्से में होने वाले कई कैंसर ठीक हो सकते हैं । इस बीमारी का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि यह बीमारी कौन से प्रकार की है, उसकी तीव्रता कितनी है और कैंसर किस स्थल पर है । इलाज के अंतर्गत सर्जरी (प्रारंभिक इलाज का प्रकार), रेडियेशन थेरपी, और कीमोथेरपी शामिल है । कैंसर का इलाज करने की संभावना को सर्वाधिक बढाने के लिए टाटा स्मारक केंद्र के डॉक्टर्स ज्यादातर, इलाज के विविध प्रकारों का सम्मिश्रण करते हैं । यद्यपि कैंसर का ठीक होना इलाज का प्राथमिक लक्ष्य है, एक मरीज की बाह्याकृति तथा काम-काज करने की क्षमता को बनाए रखने और इस तरह उनके जीवन की गुणवत्ता का संरक्षण, भी अत्यंत महत्वपूर्ण लक्ष्य है और इलाज का एक समग्र भाग है । आज, सर्जरी के तकनीक, पुनर्निर्माण, और बिना सर्जरी के, किए जाने वाले इलाज के प्रकार में हुई प्रगति तथा विविध विशेषज्ञों की निपुणता रखने वाली टीम – जो प्रत्येक मरीज की देखभाल करता है , ने साथ मिलकर, इलाज लेने वाले लगभग प्रत्येक मरीज के लिए जीवन की गुणवत्ता के लक्ष्य को प्राप्त करना संभव कर दिया है । सर्जरी सिर एवं गर्दन के कैंसर के लिए इलाज का मुख्य आश्रय सर्जरी है ।स्वर यंत्र को होने वाले नुक्सान के कारण,सिर एवं गर्दन की सर्जरी के बाद बोलने की क्षमता का नष्ट होना पहले सामान्य बात थी । पर, सर्जरी की तकनीकों में लगातार होने वाली प्रगति के कारण अधिक मरीज अपनी सामान्य कार्यप्रणाली का संरक्षण कर पाते हैं । सर्जनस ने अपनी तकनीक में निपुणता हासिल की है, उदाहरण के लिए,पूरे अवयव को निकालने के स्थान पर स्वर यंत्र का केवल एक भाग निकालना । वास्तव में,जहाँ पहले, उस पूरे अवयव को निकालना आवश्यक होता था, वहां आज, आधे से ज्यादा मामलों में स्वरयंत्र का संरक्षण करने की सर्जरी संभव है ।अब इतनी प्रगति हुई है कि जब ट्यूमर आँख के आसपास के हिस्से को घेरे रहता है तब डॉक्टर्स आँख कोनुक्सान होने से बचा पाते हैं । गर्दन के जिस हिस्से में कैंसर की शुरुआत हुई है, क्या कैंसर की कोशिकायें वहां से आगे फ़ैल गयी हैं यह जानने के लिए कुछ मरीजों के गर्दन की लसिका ग्रंथियों की सर्जिकल जांच(इसे ‘नेक डिसेक्शन’ कहते हैं) करने की जरूरत पड सकती है; आज, नई तकनीकों का प्रयोग करके सर्जन्स, कंधे की क्रिया के लिए ज़रूरी नसों को बिना कोई नुक्सान पहुंचाये, इन लसिका ग्रंथियों को निकालते हैं | खोपड़ी के तह पर होने वाले ट्यूमर को निकालने के लिए किए जाने वाले मुश्किल ऑपरेशन – जिसे कभी बहुत मुश्किल समझा जाता था – अब ऐसे ऑपरेशन नियमित रूप से किए जाते हैं | टाटा स्मारक केंद्र की ‘स्कल बेस सर्जरी’ टीम को इस विशिष्टता में विश्व में अग्रणी होने की मान्यता मिली ह जब बड़ी सर्जरी की जाती है तब अक्सर उस हिस्से का तत्काल पुनर्निर्माण संभव होता है | उदाहरण के लिए, जिन मामलों में जबड़े की हड्डी को निकालना जरूरी होता है, वहाँ मरीज के अपने ही पैर से निकाली जाने वाली हड्डी से सर्जन एक नया जबड़ा तैयार कर सकते हैं | पैर की हड्डियों के साथ वहां की रक्त-नालियों को भी निकाला जाता है और गर्दन की रक्त-नालियों से जोड़ा जाता है, इससे नए जबड़े के लिए रक्त की आपूर्ति या सप्लाई तैयार हो जाती है | कुछ 15 वर्ष पूर्व टाटा स्मारक केंद्र के सर्जन्स ने यह पथप्रदर्शक तकनीक विकसित की | इसी प्रकार, एक मरीज की पीठ या पेट की त्वचा और मांसपेशियां सिर की खाल के भाग को प्रतिस्थापित करने या बदलने के लिए उपयोग की जा सकती है | दांतों को प्रतिस्थापित करने के लिए ‘डेंटल इम्प्लान्ट्स’ या नकली दांतों का उपयोग किया जा सकता है | रेडियेशन थेरपी रेडियेशन थेरपी के अंतर्गत बाह्य बीम ट्रीटमेंट या ब्राकीथेरपी – एक तकनीक जिसमें बहुत-छोटे रेडियोसक्रीय बीजों को सीधे ट्यूमर में प्रत्यारोपित किया जाता है, दी जा सकती है | कुछ मामलों में, रेडियेशन थेरपी के दोनों प्रकार दिए जाते हैं | ट्यूमर को बहुत ही सठीक रूप से रेडियेशन थेरपी पहुंचाने के लिए टाटा स्मारक केंद्र में ‘इंटेंसिटी मॉडयूलेटेड रेडियेशन थेरपी’, या ‘आयएमआरटी’, नामक बाह्य किरण रेडियेशन देने के तीन-विमीय पद्धति का प्रयोग किया जाता है | उदाहरण के लिए, इस तकनीक के द्वारा रेडियेशन ओंकोलोजिस्ट, रेडियेशन के डोस को इस तरह से तैयार करते हैं कि रेडियेशन, ट्यूमर को घेर लेता है और “रीढ़ की हड्डी” को बचाये रखता है | कुछ समय पहले तक ऐसा करना असंभव था | आयएमआरटी से स्वस्थ ऊतकों को नुक्सान नहीं होता है (इस तरह दुष्परिणाम कम होते हैं) और रेडियेशन के उच्चतर, अधिक असरदार डोस और कुछ मामलों में रोग ग्रस्त हिस्से को अतिरिक्त रेडियेशन देना संभव हो जाता है | अक्सर, रेडियेशन थेरपी सर्जरी के साथ संयुक्त रूप से दी जाती है, पर अध्ययनों से पता चलता है कि कुछ मामलों में, रेडियेशन थेरपी के साथ – कभी कभी कीमोथेरपी मिलाकर देना – सर्जरी करने जितना ही असरदार होता है | इलाज के ये नए तकनीक, अक्सर, बीमारी की बढ़ी हुई अवस्था के मरीजों में भी, सामान्य रूप से बात करने और निगलने की क्षमता को बचाकर रखती है | कीमोथेरपी सिर एवं गर्दन के कैंसर में, कीमोथेरपी देकर इलाज करने की प्रक्रिया में भी वृद्धि हो रही है, विशेषकर ऐसे मामले जिन्हें पहले लाइलाज माना जाता था | रेडियेशन थेरपी के प्रति कैंसर कोशिकाओं की प्रतिक्रिया को बढाने के लिए अक्सर कीमोथेरपी दी जाती है, और ऐसा करने से स्वरयंत्र जैसे अवयव, जिसे पहले निकालना पड़ता था, अब उस अवयव को बचाना संभव हो गया है | ऐसे मरीज जिनकी बीमारी एडवांस्ड अवस्था में है, कीमोथेरपी देने से उनकी दीर्घायु में मदद होती है; यह विशेषकर ऐसे मरीजों के लिए फायदेमंद है जिन्हें नेसोफारिक्स या अन्य भागों का कैंसर हुआ है, जिसका इलाज सर्जरी से आसानी से नहीं हो सकता | दी जाने वाली कीमोथेरपी की दवाइयों में सिसप्लेटिन, फ्लुरोयुरेसिल, मीथोट्रेक्सट, कारबोप्लेटिन और पक्लीटेक्सेल शामिल हैं | कीमोथेरपी के लिए अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण कीमोथेरपी के लिए सिर एवं गर्दन के कैंसर के प्रत्येक मामले की प्रतिक्रिया अलग होती है, इसलिए, दिए जाने वाले इलाज के प्रति क्या कैंसर की यह बीमारी संवेदनशील होगी यानि असर दिखायेगी, यह जानने के लिए टाटा स्मारक केंद्र के अनुसंधानकर्ता नए उपकरणों की तलाश में है | ‘हिस्टोकल्चर ड्रग रेस्पोंस assayअसेय’ – इलाज के पहले आम तौर पर दी जाने वाली दवाइयों के लिए प्रतिक्रया, ऐसा ही एक प्रयोगात्मक उपकरण है, जिससे एक दिन कैंसर की कोशिकाओं की तीव्र जांच संभव हो सकती है | सिर एवं गर्दन के कैंसर के लिए टाटा स्मारक केंद्र के नैदानिक अनुसंधान प्रोटोकोल – नवीन प्रक्रिया से लेकर, कैंसर पूर्व अवस्था को दुर्दम्य होने से रोकने तथा एडवांसड और दुबारा होने वाली कैंसर की बीमारी को -- क्लिनिकल ट्रायल प्रक्रिया के जरिए कभी कभी योग्य मरीजों को दी जाती है | टाटा स्मारक केंद्र में वर्तमान क्लिनिकल ट्रायल्स के बारे में अद्यतन विवरण हेतु कृपया हमारे क्लिनिकल ट्रायल डाटाबेस देखें | |
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ल्यूकीमिया के प्रकार |
एक्यूट माईलोजीनस ल्यूकीमिया (AML) एक्यूट माईलोजीनस ल्यूकीमिया (एएमएल, जिसे कभी-कभी एक्यूट माईलोइड ल्यूकीमिया या एक्यूट नॉनलिम्फोसायटिक ल्यूकीमिया भी कहते हैं) एक प्रकार का दुर्दम्य है जो पूरे शरीर में संक्रमण के एजेंट्स से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं - ग्रानुलोसायट्स या मोनोसायट्स में पैदा होते हैं। Chronic Lymphocytic Leukemia (CLL) / क्रोनिक लिम्फोसायटिक ल्यूकीमिया (सीएलएल) Acute Myelogenous Leukemia (AML) / एक्यूट माईलोजीनस ल्यूकीमिया (एएमएल) Acute myelogenous leukemia (AML, also sometimes called acute myeloid leukemia or acute nonlymphocytic leukemia) is a malignancy that arises in either granulocytes or monocytes, white blood cells that battle infectious agents throughout the body. Chronic Myelogenous Leukemia (CML) क्रोनिक लिम्फोसायटिक ल्यूकी
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खतरे के तत्व |
एक्यूट माईलोजीनस ल्यूकीमिया (AML) विविध प्रकार के कैंसर के लिए ‘खतरे के तत्व’ का मतलब है ऐसी विशेषतायें जो एक व्यक्ति-विशेष में कैंसर होने की संभावना को बढाते है । खतरे के तत्वों में कुछ विशेष प्रकार के व्यवहार शामिल हैं जैसे धूम्रपान, वंशगत(आनुवंशिक) विशेषतायें, और वातावरण में मौजूद कैंसर के कारणकारी एजेंट्स के संपर्क में आना । इस बात की संभावना बहुत कम है कि जिस व्यक्ति में एएमएल के खतरे के ज्ञात तत्वों में से एक भी तत्व है उसे यह बीमारी हो जाएगी । सिगरेट में दर्जन की संख्या में कैंसर के कारणकारी रसायन होते हैं, और ज्यादातर फेफड़े, मूत्राशय तथा सिर एवं गर्दन के कैंसर जैसे ठोस ट्यूमर के होने के किए सिगरेट को जिम्मेदार ठहराया जाता है, पर ल्यूकीमिया के लिए भी, धूम्रपान करना खतरे का एक तत्व माना जाता है । अनुसंधानकर्ताओं का यह अनुमान है कि लगभग 20 प्रतिशत एएमएल के मामले धूम्रपान से संबंधित है । ऐसे लोगों को ल्यूकीमिया होने का अधिक खतरा है जो विकिरण के उच्च खुराक (एटॉमिक बम्ब के विस्फ़ोट से, परमाणु से तैयार किए जाने वाले शस्त्र के संयंत्र में काम करने वाले, या एक न्यूक्लियर रिएक्टर में होने वाली दुर्घटना से)के संपर्क में आते हैं । यह उन लोगों के लिए भी लागू होती है जो अपने कार्यस्थल में लम्बे समय के लिए बेंजीन जैसे सोल्वेंट्स (द्रव्य) के संपर्क में आते हैं । जिन लोगों ने, कैंसर की बीमारी के लिए, पहले कीमोथेरपी या रेडियेशन का इलाज लिया है, उन्हें ल्यूकीमिया की बीमारी होने का अधिक खतरा है, क्योंकि कीमोथेरापेटिक एजेंट्स और रेडियेशन, अस्थि-मज्जा जैसे शीघ्र विभाजित होने वाली कोशिकाओं को लक्षित करती हैं । ये एजेंट्स कोशिका के डीएनए में बदलाव ला सकते हैं या उत्परिवर्तन के कारणकारी हो सकते हैं, जिससे आगे चलकर ल्यूकीमिया सहित अन्य दुर्दम्य हो सकते हैं । होड़गिन्स डिसीज, नॉन-होड़गिन्स लिम्फोमा, बचपन में होने वाली एक्यूट लिम्फोसायटिक ल्यूकीमिया तथा स्तन एवं गर्भाशय के कैंसर जैसे अन्य दुर्दम्यों के लिए जो इलाज लिया जाता है, उसके परिणामस्वरूप एएमएल हो सकता है । जिन लोगों को माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम नामक ल्यूकीमिया-पूर्व अवस्था होती है, या जिनको दुर्लभ होने वाले आनुवांशिक सिंड्रोम जैसे डाउन्स सिंड्रोम, फन्कोनीस अनीमिया, अटेक्सीया-तेलान्जिकटेसिया, और ब्लूम्स सिंड्रोम होते हैं, उन्हें अन्य लोगों की अपेक्षा ल्यूकीमिया होने का खतरा अधिक होता है । ऊपर बताये गए में से एक या एक से अधिक खतरे के तत्व प्रदर्शित करने वाले बहुत से लोगों को कभी ल्यूकीमिया की बेमारी नहीं होती और बहुत से लोग जिनको एएमएल होता है उनमें किसी प्रकार के खतरे के तत्व नहीं होते । वैज्ञानिकों को इस बात की जानकारी तो है कि अधिकांश ल्यूकीमिया के मामले विशिष्ट जीन म्युटेशंस से जुड़े हैं, पर अधिकांश मामलों में, यह स्पष्ट नहीं है कि ये म्युटेशंस किस कारण से होते हैं ? |
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रोग लक्षण |
एक्यूट लिम्फोसायटिक ल्यूकीमिया (एएलएल) आम तौर पर एक्यूट ल्यूकीमिया के रोग लक्षण अचानक उठते हैं और ये रोग लक्षण वायरस या फ्लू की बीमारी होने पर होने वाले रोग लक्षण के समान हो सकते हैं । ये रोग लक्षण इतने सख्त हो सकते हैं कि इन लक्षणों के होने के कुछ ही समय में मरीज अपने डॉक्टर को दिखाने जाते हैं । इन रोग लक्षणों में शामिल है :
ये रोग-लक्षण विविध प्रकार की अवस्थाओं और बीमारियों से संबंधित है । पर अगर ये समस्याएं बनी रहती हैं तो डॉक्टर को दिखायें। |
एक्यूट माईलोजीनस ल्यूकीमिया (एएमएल) आम तौर पर एक्यूट ल्यूकीमिया के रोग लक्षण अचानक उठते हैं और ये रोग लक्षण वायरस या फ्लू की बीमारी होने पर होने वाले रोग लक्षण के सामान हो सकते हैं । ये रोग लक्षण इतने सख्त हो सकते हैं किइन लक्षणों के होने के कुछ ही समय में मरीज अपने डॉक्टर से मिलने जाते हैं। इन रोग लक्षणों में शामिल है :
ये रोग-लक्षण ल्यूकीमिया के अलावा विविध प्रकार की अवस्थाओं और बीमारियों से संबंधित है । पर अगर ये समस्याएं बनी रहती हैं तो डॉक्टर को दिखायें। |
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ईलाज |
एक्यूट लिम्फोसायटिक ल्यूकीमिया (एएलएल) डॉक्टर्स एएलएल के प्रत्येक मरीज के लिए इलाज का एक प्रारूप तैयार करते हैं जिसमें बहुत से तत्वों पर विचार किया जाता है : एएमएल सबटाइप; खून में पहचाने जाने वाले ल्यूकीमिया की कोशिकाओं की गिनती, कौन से क्रोमोजोमल परिवर्तन मौजूद हैं, तथा मरीज की उम्र एवं परिपूर्ण स्वास्थ्य । इस कारण से, एक ही बीमारी के सबटाईप वाले एएलएल के मरीजों को, अलग-अलग इलाज दिया जाता है । कीमोथेरपी, इम्यूनोथेरपी और बॉन मरो/अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण, वयस्कों को होने वाले ल्यूकीमिया के लिए इलाज के मानक प्रकार हैं । कभी कभी सेंट्रल नर्वस सिस्टम या अंड-ग्रन्थी में होने वाली ल्यूकीमिया के लिए तथा हड्डी के खराब होने से जो दर्द होता है उसके लिए रेडीयेशन थेरपी ट्रीटमेंट – अर्थात कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने वाली तीव्र ऊर्जा की किरणों का प्रयोग किया जाता है । पर चूंकि ल्यूकीमिया सिस्टेमिक या दैहिक होता है, इसलिए लगभग हमेशा ही सर्जरी असफल होती है । एएलएल की बीमारी के लिए इलाज तीन चरणों में विभाजित है :
रेमिशन इंडकशन रेमिशन इंडकशन अवस्था का उद्देश्य है रेमिशन को प्रवृत्त करना, एक ऐसी अवस्था जिसमें बीमारी का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होता और ब्लड काउंट सामान्य होते हैं । इस अवस्था में मरीजों को विनक्रिसटीन, प्रेडनिसोन, एल-एस्पराजिनेस, डोक्सोरुबिसिन, डाऊनोरुबिसिन या सायक्लोफोसफामाईड सहित दवाईयों का मिश्रण दिया जाएगा । इलाज चार हफ़्तों तक चल सकता है और मरीजों को रेमिशन इंडकशन थेरपी के दौरान अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है । रेमिशन जारी रखना (कंसोलिडेशन, इनटेंसीफिकेशन) दूसरी अवस्था में, रेमिशन जारी रखना, कंसोलिडेशन, या इनटेंसीफिकेशन की अवस्था में, मरीजों को कीमोथेरपी का हाय डोस दिया जा सकता है, जिसे इस तरह से तैयार किया गया है कि ल्यूकीमिया की बची हुई कोशिकाओं को भी नष्ट किया जा सके । इस अवस्था में, इलाज के अंतर्गत दो या दो से अधिक एजेंट्स का सम्मिश्रण होता है 6-मेरकैपटोप्युरिन, मीथोट्रेकसेट, विनक्रिसटीन, प्रेडनिसोन, सायटाराबैन, डोक्सोरुबिसिन, डाऊनोरुबिसिन, मीटोकसानट्रोन, ईटोपोसाइड, आयफ़ोसफामैड, और सायक्लोफोसफामाईड । अनुरक्षण तीसरे चरण, अनुरक्षण के चरण में , मरीजों को दवाइयों का कम तीव्र डोस दिया जाएगा पर लम्बी अवधि – दो साल तक के लिए । इस अवस्था का उद्देश्य है ल्यूकीमिया की जो कोशिकायें, रेमिशन इंडकशन और कंसोलिडेशन की अवस्थाओं में इस्तमाल किए जाने वाले एजेंट्स से बच निकले हैं, ऐसी भटकी हुई कोशिकाओं को नष्ट करना; प्रयोगशाला में किए जाने वाले टेस्ट द्वारा इन कोशिकाओं को पहचानना संभव नहीं होगा । मीथोट्रेक्सेट, 6-मेरकैपटोप्युरिन, विनक्रिसटिन, और प्रेडनिसोन मेनटेनेन्स के लिए सामान्य तौर पर इस्तमाल की जाने वाली दवाइयाँ हैं । इम्यूनोथेरपी इलाज की पूरी अवधि के दौरान डॉक्टर्स इम्यूनोथेरापेटिक दवाइयां शामिल कर सकते हैं । इन एजेंट्स को इस तरह तैयार किया गया है कि ये दवाइयाँ मरीज को, अपनी संक्रमण प्रणाली को पहचानने के लिए उत्तेजित करे और ल्यूकीमिया की कोशिकाओं पर आक्रमण करे । इम्युनोथेरापी एजेंट्स के अंतर्गत इंटरफेरोन अल्फा शामिल है, जो शरीर में स्वाभाविक रूप से पैदा होते हैं, और मोनोक्लोनल एन्टीबोडीस, जो ट्यूमर की कोशिकाओं के सतह पर मौजूद विशिष्ट स्थल (एंटीजेंस) पर लक्ष्य डालने के लिए तैयार किए, आनुवांशिक रूप से बनाए गए प्रोटीन्स होते हैं । मोनोक्लोनल एन्टीबोडीस रोगग्रस्त कोशिकाओं को सीधे नष्ट कर सकती हैं, या रेडियोआयसोटोप्स (ट्यूमर कोशिकाओं तक विकिरण फैलाने वाली रेडियोसक्रीय तत्व) दवाइयाँ, या उससे जुडी ट्यूमर की कोशिकाओं को नष्ट करने वाले जीव विष के साथ “संयुक्त” रूप से इस्तमाल किए जा सकते हैं । कीमोथेरपी एएलएल की बीमारी का सेंट्रल नर्वस सिस्टम (सीएनएस)—दिमाग और रीढ़ की हड्डी में फैलना असामान्य नहीं है । यह बारंबार उन मरीजों में होता है जिन्हें एएलएल सबटाइप L3 होता है । अधिकांश मरीजों की इलाज प्रणाली में सीएनएस के सम्मिलन के निवारण या नियंत्रण के लिए इलाज शामिल है । बीमारी को सीएनएस में फैलने से रोकने के लिए, डॉक्टर्स, इंट्राथेकल्ली –अर्थात रीढ़ की हड्डी और दिमाग का आवरण करने वाले स्राव में स्पाईनल कॉलम के जरिए सीधे कीमोथेरपी दे सकते हैं । दूसरी ओर, बीमारी को सीएनएस में फैलने से रोकने के लिए – मरीजों को सिस्टेमिक कीमोथेरपी का हाय डोस या क्रेनियल इर्रेडीयेशन -– सिर को रेडियेशन थेरपी, दे सकते है । बॉन मेरो ट्रांसप्लांट स्टेम सेल या बॉन मेरो प्रत्यारोपण कुछ एएलएल के मरीजों के लिए इलाज का विकल्प है; प्रारम्भिक रेमिशन प्राप्त होने के बाद यह प्रक्रिया की जाती है । इस प्रक्रिया में, अस्थि-मज्जा(बोन मरो) या स्टेम सेल्स—रक्त का उत्पादन करने वाली कोशिकायें -- मरीज के(ऑटोलॉग्स ट्रांसप्लांटेशन) या दान करने वाले के(अल्लोजेनिक ट्रांसप्लांटेशन) मेरो या रक्त वाहिका से छाना जाता है या फिल्टर किया जाता है और फिर जमाया जाता है । फिर मरीज को कीमोथेरपी या रेडियोथेरपी का हाय डोस दिया जाता है, जो ट्यूमर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है पर साथ ही मरीज के बोन-मेरो में मौजूद स्टेम सेल्स को भी नष्ट कर देता है । मरीज की प्रतिरक्षा की प्रणाली का पुनर्निर्माण करने में मदद हेतु, तैयार की गयी स्टेम सेल्स या बोन मेरो, मरीज को दी जाती है या उनका प्रत्यारोपण किया जाता है । कुछ विशेष प्रकार के ल्यूकीमिया के मरीजों में -- नए, अत्यधिक संवेदनशील प्रयोगशाला टेस्ट अब मिनिमल रेसिड्यूल डिसीज की जांच कर सकते हैं –इलाज खत्म होने के बाद शरीर में शेष रहने वाली कुछ- एक ल्यूकीमिया की कोशिकायें । ऐसी जांचों से प्राप्त जानकारी से, डॉक्टर्स, ल्यूकीमिया के मरीजों के लिए इलाज के अन्य विकल्प तैयार कर सकते हैं । |
डॉक्टर्स एएमएल के प्रत्येक मरीज के लिए इलाज का एक प्रारूप तैयार करते हैं जिसमें बहुत से तत्वों पर विचार किया जाता है : एएमएल सबटाइप; खून में पहचाने जाने वाले ल्यूकीमिया की कोशिकाओं की गिनती, कौन से क्रोमोजोमल परिवर्तन मौजूद हैं, तथा मरीज की उम्र एवं परिपूर्ण स्वास्थ्य । इस कारण से, एक ही बीमारी के सबटाईप वाले एएमएल के मरीजों को, अलग-अलग इलाज दिया जा सकता है । कीमोथेरपी, इम्यूनोथेरपी और बॉन-मेरो/अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण, वयस्कों को होने वाले ल्यूकीमिया के इलाज के मानक प्रकार हैं ।कभी कभी सेंट्रल नर्वस सिस्टम या शरीर के किसी अन्य स्थल पर होने वाली ल्यूकीमिया के लिए रेडीयेशन थेरपी ट्रीटमेंट – अर्थात कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने वाली तीव्र ऊर्जा की किरणों का प्रयोग किया जाता है । पर चूंकि ल्यूकीमिया सिस्टेमिक या दैहिक होता है इसलिए लगभग हमेशा ही सर्जरी असफल होती है । एएमएल के लिए इलाज दो चरणों में विभाजित है : रेमिशन इंडकशन और पोस्ट-रेमिशन थेरपी । रेमिशन इंडकशन अवस्था का उद्देश्य है रेमिशन को प्रवृत्त करना, एक ऐसी अवस्था जिसमें बीमारी का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं होता और ब्लड काउंट सामान्य होते हैं । इस अवस्था में मरीजों को डाऊनोरुबिसिन, इडारुबिसिन, या माइटोकसानट्रोन प्लस सायटाराबैन और थीयोगुआनाइन सहित दवाईयों का मिश्रण दिया जाएगा । अगले चरण , पोस्ट-रेमिशन थेरपी के चरण में, यदि ल्यूकीमिया की कोई कोशिकायें बची हुई हों तो उनको नष्ट करने के लिए मरीजों को कीमोथेरपी के हाय डोस दिए जा सकते हैं । इस चरण में, इलाज के अंतर्गत सायटाराबैन, डाऊनोरुबिसिन, इडारुबिसिन, ईटोपोसायड, सायक्लोफ़ोसफामाईड, माइटोकसानट्रोन, या सायटाराबैन जैसे दो या दो से अधिक एजेंट्स का सम्मिश्रण शामिलकिया जा सकता है । स्टेम सेल या बॉन मेरो प्रत्यारोपण कुछ एएलएल के मरीजों के लिए इलाज का विकल्प है; प्रारम्भिक रेमिशन प्राप्त होने के बाद यह प्रक्रिया की जाती है । इस प्रक्रिया में, अस्थि-मज्जा(बोन मरो) या स्टेम सेल्स—रक्त का उत्पादन करने वाली कोशिकायें -- मरीज के (ऑटोलॉग्स ट्रांसप्लांटेशन) या दान करने वाले के(अल्लोजेनिक ट्रांसप्लांटेशन) मेरो या रक्त वाहिका से छाना जाता है या फिल्टर किया जाता है और फिर जमाया जाता है । फिर मरीज को कीमोथेरपी या रेडियोथेरपी का हाय डोस दिया जाता है, जो ट्यूमर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है पर साथ ही मरीज के बोन-मेरो में मौजूद स्टेम सेल्स को भी नष्ट कर देता है । मरीज की प्रतिरक्षा की प्रणाली का पुनर्निर्माण करने में मदद हेतु, तैयार की गयी स्टेम सेल्स या बोन मेरो, फिर मरीज को दी जाती है या उनका प्रत्यारोपण किया जाता है । |
गुर्दे का कैंसर |
दुर्दम्य या कैंसरग्रस्त ट्यूमर दो वर्गों में आते हैं : प्राइमरी या मेटास्टाटिक । प्राइमरी ट्यूमर गुर्दे में ही उत्पन्न होते हैं । हेपाटोसेल्युलर कार्सिनोमा प्राइमरी गुर्दे के कैंसर का सबसे ज्यादा पाया जाने वाला प्रकार है । मेटास्टाटिक या सेकंडरी, गुर्दे का ट्यूमर, शरीर के किसी दूसरे हिस्से में हुए कैंसर से गुर्दे में फैलते हैं । गुर्दे का एक प्रमुख काम है खून को छानना, इसलिए शरीर के अन्य भागों से आने वाली कैंसर की कोशिकायें गुर्दे में जम जाती हैं और ट्यूमर बन जाती हैं । गुर्दे में होने वाले सबसे सामान्य प्रकार के मेटास्टाटिक ट्यूमर वे हैं जो कोलन कैंसर से होते हैं और वहां से गुर्दे में फ़ैलते हैं । प्राईमरी गुर्दे का कैंसर, या हेपाटोसेल्युलर कार्सिनोमा, गुर्दे में ही उत्पन्न होने वाला सबसे सामान्य प्रकार का कैंसर है । (गुर्दे में होने वाले अधिकांश ट्यूमर वहां उत्पन्न नहीं होते, वे शरीर में कहीं और होते हैं और वहाँ से फिर गुर्दे में फैलते हैं, या गुर्दे में मेटास्टासाइज़ होते हैं । यूनाईटेड स्टेट्स में, प्राईमरी गुर्दे का कैंसर, दुर्लभ है – इसकी गिनती सभी प्रकार के कैंसर की तुलना में 1 प्रतिशत से भी कम है । पर विश्वभर में, हेपाटोसेल्युलर कार्सिनोमा, सबसे अधिक पाया जाने वाला सघन अवयव ट्यूमर है । ऐसा माना जाता है कि इसका कारण है व्यापक रूप से फैला वायरल हेपाटिटिस संक्रमण, जो प्राईमरी गुर्दे के कैंसर के लिए, ज्ञात खतरे का कारक है । अधिकांश प्राईमरी गुर्दे के कैंसर, गुर्दे के परेनकायमल कोशिकाओं -- अवयव के खून को छानने की प्रक्रिया करने वाली कोशिकाओं में आरम्भ होता है । प्राईमरी लीवर कैंसर के अन्य दुर्लभ प्रकार हैं पेरीफेरल चोलान्जियोकार्सिनोमा (गुर्दे में मौजूद बाईल डक्ट के खानों में ट्यूमर होना), तथा हेपाटोब्लास्टोमास (इलाज से ठीक होने की संभावना रखने वाला गुर्दे का कैंसर जो ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है) । हेपाटोसेल्युलर कार्सिनोमा, ज्यादातर उन लोगों में होता है जिनके गुर्दे खराब हो गए हैं । यह नुक्सान मद्यपान करने, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस सी वायरस के जीर्ण संक्रमण, अफ्लाटोक्सिन नामक खाद्य संदूषण (यह यूनाईटेड स्टेट्स में दुर्लभ है ), या मेटाबोलिक बीमारियों से होता है । कैंसर की बीमारी गुर्दे से रक्त या लिम्फ सिस्टम के जरिए, शरीर के अन्य हिस्सों में – ज्यादातर फेफड़े, हड्डियां और पेट में फ़ैल सकता है । गुर्दे में कई बेनाइन, या गैर-कैंसरजन्य, ट्यूमर हो सकते हैं । बेनाइन ट्यूमर के सबसे सामान्य रूप से पाए जाने वाले प्रकार को हेमान्जियोमा कहते हैं । हेमान्जियोमा शरीर में कहीं भी हो सकते हैं पर ज्यादातर त्वचा में और सबक्यूटेनियस टिश्यूस में होते हैं (त्वचा के नीचे के हिस्से में मौजूद ऊतक) । लगभग सभी मामलों में, गुर्दे के हेमान्जियोमा अहानिकर होते हैं । केवल दुर्लभ स्थितियों में ही हेमान्जियोमा के कारण दर्द या अन्य तकलीफ होती है । एक बार उनकी जांच की जाए और यह निश्चित हो जाए कि ये अहानिकर हैं, तो उन्हे अकेले छोड़ा जा सकता है । |
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खतरे के कारक |
हेपाटोसेल्युलर कैंसर विश्व में सबसे अधिक पाये जाने वाले कैंसर में से एक है । हेपाटिटीस बी वायरस और हेपाटिटीस सी, गुर्दे के कैंसर के लिए खतरे के कारक हैं, इसलिए अफ्रीका, चाईना और दक्षिणपूर्वी एशिया – सहित इन संक्रामक बीमारियों का अधिक दर रखने वाले क्षेत्रों में गुर्दे के कैंसर का दर अधिक है । यद्यपि हेपाटिटीस सी संक्रमण की घटनायें बढ़ रही हैं, परन्तु यूनाईटेड स्टेट्स में यह वायरल संक्रमण कम प्रचलित हैं । वायरल हेपाटिटिस अक्सर चुपचाप होने वाली एक बीमारी है । हेपाटिटिस वायरस वर्षों तक शरीर में मौजूद रह सकती है और इससे न कोई दर्द होता है न इसके कोई रोग-लक्षण होते हैं । लगभग चार करोड़ अमरीकी, हेपाटिटिस सी वायरस के वाहक हो सकते हैं, और अधिकांश लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं होगी कि वे संक्रमित हैं । संक्रमित खून या शरीर के स्रावों के संपर्क में आने से वायरल हेपाटिटिस, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को होता है । कई मामलों में, वर्ष 1992 के पूर्व किए गए खून के प्रत्यारोपण से, लोग संक्रमित हुए हैं (इस बीमारी के लिए नियमित रूप से खून की जांच करने से पूर्व) । थोड़े बहुत मामले, अभी भी, हाल ही में किए गए खून के प्रत्यारोपण से सम्बंधित हैं । अंत:शिरा से दवाइयाँ लेने वाले व्यक्ति, अविसंक्रमित सुइयों के संपर्क में आने से संक्रमित हो सकते हैं । ये संक्रमण इतने गंभीर माने जाते हैं कि अक्टूबर 1998 में यू.एस.सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन ने दिशा-निर्देश जारी किए कि यदि किसी व्यक्ति को वर्ष 1992 के पूर्व का संक्रमित रक्त चढ़ाया गया है तो अस्पताल उस व्यक्ति का पता लगाए और सूचित करें । संक्रमण की प्रारम्भिक अवस्था में, अल्फा-इंटरफेरोन और रिबावायरिन नामक एंटी-वायरल औषधियों के मिश्रण से हेपाटिटिस बी का इलाज किया जा सकता है । कुछ मामलों में, खून की नली से, वायरस का उन्मूलन करके शरीर से इसे अलग किया जा सकता है । इस कारण से, डॉक्टर यह सिफारिश करते हैं कि इस बीमारी के होने का अधिक खतरा रखने वाले लोगों की जांच की जाए । अगर संक्रमण बढ़ता है तो इससे चिरकारी गुर्दे की बीमारी या सिरोसिस, गुर्दे में बढ़ने वाली एक बीमारी हो सकती है जो बाद में गुर्दे का कैंसर हो जाता है । हेपाटिटिस बी के लिए एक टीका भी है । डॉक्टर्स सिफारिश करते हैं कि बच्चे, तथा इस बीमारी के होने का, अधिक खतरा रखने वालों का टीकाकरण किया जाए । अत्यधिक मद्यपान करने के कारण जिन लोगों के गुर्दे खराब हो गए हैं, ऐसे लोगों को प्राईमारी गुर्दे का कैंसर होने का खतरा अधिक है । मद्यपान करने वाले लगभग 15 प्रतिशत लोगों को गुर्दे का सिर्होसिस होगा । सिर्होसिस के कारण सर्जरी करके प्राईमरी गुर्दे के कैंसर का इलाज करना अधिक मुश्किल हो जाता है । |
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रोग लक्षण |
प्राईमरी गुर्दे के कैंसर के बहुत से मरीजों को कोई रोग लक्षण नहीं होते । कुछ मामलों में, पीलिया, बेचैनी, या अस्वस्थ होने की अनुभूति, भूख न लगना, वजन कम होना, बुखार, थकान, पेट फूलना, खुजली, पैरों में सूजन, या कमजोरी हो सकती है । पेट में दर्द या अस्वस्थता भी हो सकती है । |
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निदान |
गुर्दे की प्रारम्भिक अवस्था के कैंसर का निदान आम तौर पर खून की जांच, नैदानिक इमेजिंग, सर्जिकल बायोप्सी या लाप्रोस्कोपी, या ऊपरोक्त के मिश्रण द्वारा किया जाता है । अधिक खतरा रखने वाली जनसंख्या(हेपाटिटिस बी और हेपाटिटिस सी संक्रमण) में इस बीमारी के होने का पता लगाने के लिए अल्फा-फेटोप्रोटीन ब्लड टेस्ट तथा गुर्दे का अल्ट्रासाउंड इमेजिंग भी किया जाता है । स्वस्थ लोगों को, गुर्दे का कैंसर होने का खतरा कम होता है, इसलिए आम जनता की जांच करने के लिए ये टेस्ट नहीं किए जाते । अल्फा-फेटोप्रोटीन(एएफपी) ब्लड टेस्ट, खून में गुर्दे के द्वारा निर्मित एक प्रकार की प्रोटीन, की मात्रा का आकलन करती है । एएफपी की बड़ी हुई मात्रा, गुर्दे की प्रारम्भिक अवस्था के सबसे अधिक पाए जाने वाले कैंसर - हेपाटोसेल्युलर कार्सिनोमा, का सूचक हो सकती है । अगर गुर्दे का कैंसर होने की शंका होती है तो गुर्दे की काम करने की क्षमता का माप करने के लिए खून के दूसरे जांच किए जाते हैं । यह जांच, गुर्दे की अवस्था को समझने में डॉक्टर्स की मदद कर सकती है । गुर्दे के कैंसर के सफल इलाज के अंतर्गत कैंसर ग्रस्त हिस्से को निकालने के साथ-साथ स्वस्थ गुर्दे के ऊतक का एक अच्छा खासा भाग भी निकालते हैं, जिन लोगों के खून की जांच के रिपोर्ट यह सूचित करते हैं कि उन्हें उच्च दर्जे की गुर्दे की बीमारी है, उनपर दूसरी तरह के इलाज किए जा सकते हैं । गैर-अंत:करण नैदानिक इमेजिंग तकनीक अधिक परिष्कृत हो गए हैं । हाल ही में पहचाने गए ट्यूमर के सही आकार, और सघनता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है । दिए जाने वाले इलाज के लिए एक ट्यूमर कैसी प्रतिक्रिया देगा इसका आकलन करने के लिए भी इन तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है । कुछ मामलों में, बायोप्सी के लिए ऊतक का एक छोटा-सा हिस्सा निकालकर या लापरोस्कोपी (कैंसर के स्थल का सर्वेक्षण करने के लिए कैमरा लगा हुआ एक छोटा सा ट्यूब पेट में घुसाना) से, अंत:करण द्वारा निदान किया जाता है। Noninvasive Diagnostic Imaging Techniques / गैर-अंत:करण नैदानिक इमेजिंग तकनीक
Invasive Diagnostic Techniques / अंत:करण नैदानिक तकनीक
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इलाज |
इलाज प्रदान करने के उद्देश्य से, गुर्दे के प्रारम्भिक ट्यूमर को 4 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है | स्थानिक और उच्छेदनीय ट्यूमर एक स्थान पर पाये जाते हैं और उन्हें निकाला जा सकता है | स्थानिक और अउच्छेदनीय ट्यूमर एक स्थान पर पाये जाते हैं पर उन्हें सुरक्षित रूप से पूरी तरह निकाला नहीं जा सकता | कैंसर के एडवांस्ड मामलों में, कैंसर पूरे गुर्दे में और/या शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है | रिकरेन्ट या शरीर में कैंसर के फिर से होने वाले मामलों में, प्रारम्भिक इलाज लेने के बाद कैंसर की बीमारी, गुर्दे में या शरीर के दूसरे किसी भाग में फिर से हो जाती है | सर्जरी गुर्दे के कैंसर के अधिकांश प्रारम्भिक मामलों का उत्तम इलाज सर्जरी करके गुर्दे के रोग-ग्रस्त भाग को निकालना है | 1980 के आरंभिक वर्षों में प्राइमरी गुर्दे के ट्यूमर को निकालने के लिए सर्जरी बहुत दुर्लभ ही की जाती थी | पर अब टाटा स्मारक केंद्र में अत्यधिक जटिल गुर्दे के ऑपरेशन अधिक संख्या में, सफलता और सुरक्षा के साथ किए जा रहे हैं | हमारे अनुसंधानकर्ताओं ने हाल ही में दिखाया है कि, बुजुर्ग मरीजों में भी सफलतापूर्वक हेपाटोबाईलरी सर्जरी की जा सकती है | जवान मरीजों में सर्जरी करने के जो परिणाम होते हैं, बुजुर्ग मरीजों में भी उससे तुलनीय परिणाम होते हैं, इसलिए 70 वर्ष से अधिक की उम्र के मरीजों के इलाज के लिए अगर सर्जरी करनी हो तो केवल तैथिक उम्र निर्धारी कारक नहीं होना चाहिए | कई कारणों से गुर्दे का ऑपरेशन करना मुश्किल हो सकता है | ह्रदय में और ह्रदय से होकर जाने वाली कई प्रमुख रक्त नालियाँ गुर्दे के पीछे से या गुर्दे में से होकर गुजरती हैं, इसलिए मूलत:गुर्दा ह्रदय से “जुडा हुआ” रहता है | साथ ही, बाहर से गुर्दे की संरचना हमेशा स्पष्ट नहीं होती | यह अव्यव आकार में बड़ा, सघन और नाजुक है और इसका एक भाग पसली से घिरा हुआ रहता है | जख्मी होने पर इसमें से बहुत ज्यादा रक्त-स्राव होता है और यह आसानी से फटता है | अमरीका में हेपाटोसेल्युलर कैंसर दुर्लभ है, इसलिए बहुत-से सर्जन्स गुर्दे का रिसेक्शन या उच्छेदन करने के अनुभवी नहीं होंगें | हमारे सर्जन्स, देश के किसी भी कैंसर केंद्र की अपेक्षा सर्वाधिक गुर्दे की रिसेक्शन या उच्छेदन करते हैं –प्रति वर्ष 200 से 300 | गुर्दे में पुनरुत्पादन करने की क्षमता है : 80 प्रतिशत तक के अवयव को, सर्जरी करके निकाला जा सकता है और कई हफ़्तों के अंदर, गुर्दा, स्वयं का, पूर्ण पुनरुत्पादन कर लेता है | अगर सर्जरी करके एक लोब या खंड – उसकी रक्त नालियों के साथ -- निकाली जाती है तो, शेष बचा खंड इस नुक्सान को पूरा करेगा | सर्जरी के पहले पुनरुत्पादन को उत्तेजित करने वाली एक नई तकनीक का भी यहाँ मूल्यांकन किया जा रहा है | इस तकनीक का नाम है ‘प्री-ऑपरेटिव पोर्टल वेइन एमबोलाइजेशन तकनीक’ | अगर डॉक्टर्स को लगता है कि रिसेक्शन के बाद अच्छे परिणाम हेतु गुर्दे का बचा हुआ भाग बहुत छोटा है, तो रिसेक्शन की प्रक्रिया करने से पहले वे खून की सप्लाय को गुर्दे के स्वस्थ भाग में अंतरित कर सकते हैं | उस सामान्य भाग का आकार बढ़ता है, और जब वह पर्याप्त आकार का हो जाता है तो रिसेक्शन किया जा सकता है | जब गुर्दे पर, कैंसर के अलावा किसी दूसरी बीमारी का बोझ होता है तो, सर्जरी कॉमप्लीकेटेड और कभी-कभी असंभव हो जाती है | सिरहोसीस जैसी बीमारी गुर्दे को कमजोर बना देती है और अक्सर गुर्दा हमेशा के लिए खराब हो जाता है और उसमें पुनरुत्पादन की क्षमता सीमित हो जाती है | एक मरीज जिसका गुर्दा, सिरहोसीस और ट्यूमर दोनों से ग्रस्त है, उनका इलाज, सर्जरी को छोड़कर किसी और प्रकार से किए जाने की संभावना अधिक है | इलाज के कुछ प्रकार नीचे दी गए हैं | अब्लेटिव थेरपीस : अब्लेशन थेरपी में ट्यूमर को नष्ट करने के लिए एक रसायनिक एजेंट या उर्र्जा का उपयोग किया जाता है | अब्लेटिव प्रक्रियाएं परक्युटेनियस (बिना काट-छाट के, त्वचा के जरिए) या सर्जरी के दौरान की जा सकती है | परक्युटेनियस (बिना काट-छांट के, त्वचा के जरिए) की जाने वाली प्रक्रियायें हैं - क्रायोसर्जरी (ट्यूमर कोशिकाओं को ज़माना और नष्ट करना), रेडियोफ्रीकवेंसी (आरएफ) अब्लेशन, मद्य के द्वारा अब्लेशन, और एम्बोलायजेशन | ये थेरपीस बहुत प्रभावी हो सकते हैं पर आम तौर पर कैंसर का इलाज करने के बजाय उसको काबू में करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है | मरीज को, केवल अब्लेटिव प्रक्रियायें दी जा सकती हैं या सर्जरी द्वारा ट्यूमर को निकालने के समय , सर्जरी के साथ मिलाकर दी जा सकती हैं | उदाहरण के लिए, हेपाटोसेल्युलर कैंसर का एक मरीज, जिनके लिए सर्जरी निर्धारित नहीं है, उनके ट्यूमर के आकार को घटाने के लिए पहले एमबोलायजेशन से उनका इलाज किया जाता है जिससे ट्यूमर का आकार इतना छोटा हो जाए कि अब्लेटिव प्रक्रिया के दूसरे प्रकार या सर्जरी करना संभव हो जाए | क्रायोसर्जरी में, ट्यूमर को जमाने के लिए उसके बीच में से एक सुई घुसाई जाती है | इस प्रक्रिया में, ट्यूमर कोशिकाओं के अवशिष्ट छूट सकते हैं, इसलिए यह प्रक्रिया सर्जरी की तुलना में कम असरदार है | ट्यूमर अक्सर बड़ी रक्त नलियों के नजदीक होते हैं, इसलिए ट्यूमर को पूरी तरह जमाने के लिए आवश्यक तापमान पर ट्यूमर को रखना मुश्किल हो सकता है | फिर भी, गुर्दे के ट्यूमर को काबू में करने के लिए क्रायोसर्जरी बहुत असरदार हो सकती है | रेडियोफ्रीकवेंसी अब्लेशन में, क्रायोसर्जरी का ठीक विपरीत होता है | ट्यूमर को जमाने के स्थान पर, फिजिशियन्स, रेडियो तरंगों का प्रयोग करके, इतने अधिक तापमान पर ट्यूमर को गरम रखते हैं कि ट्यूमर नष्ट हो जाता है | आरएफ अब्लेशन असरदार है, पर केवल छोटे आकार के ट्यूमर के लिए इस प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है | इस थेरपी से बीमारी ठीक नहीं होती है, ट्यूमर के बढ़ने को रोकने के उद्देश्य से यह थेरपी दी जाती है | मद्य देकर अब्लेशन या पीईआयटी(परक्यूटेनियस ईथानॉल इंजेक्शन द्वारा इलाज) ट्यूमर को सीधे जीव विष पहुंचाने का एक जरिया है | 5 सेमी से कम आकार के ट्यूमर के लिए यह बहुत असरदार है | यह इलाज सामान्य तौर पर उन मरीजों को दिया जाता है जिनकी सर्जरी नहीं की जाएगी | रेडियेशन थेरपी ट्यूमर को नियंत्रण में करने के लिए चुनिन्दा मामलों में रेडियेशन थेरपी दी जाती है | रेडियेशन की किरण को ट्यूमर पर केन्द्रित करने के लिए रेडियेशन ऑनकोलोजिस्ट अस्पताल में नई तकनीकों का प्रयोग करते हैं और गुर्दे के स्वस्थ भाग को बचाते हैं | एमबोलायजेशन एमबोलायजेशन की प्रक्रिया में ट्यूमर को खून की सप्लाय काट दी जाती है | डॉक्टर्स, हेपाटिक आर्टरी –प्रमुख आर्टरी जो गुर्दे तक रक्त पहुंचाती है -- की एक शाखा को – प्लास्टिक के छोटे कणों से भर देते हैं, जिससे अधिकांश रक्त प्रवाह कट जाता है और ट्यूमर, जीवन दायी ऑक्सीजन से वंचित रहता है |
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फेफड़े का कैंसर |
90,000 से अधिक पुरुष और 79,000 से अधिक महिलाओं में प्रति वर्ष फेफड़े और ब्रोनकाय (फेफड़ों तक जाने वाली एयर ट्यूब्स) का कैंसर होता है | पुरुषों में, फेफडे के कैंसर के मामले कम हो रहे हैं, पर महिलाओं में इस कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं | स्तन के कैंसर से जितनी महिलाओं की मृत्यु होती है उससे अधिक संख्या में फेफड़े के कैंसर से होती है | हाल ही में किए गए अध्ययन यह सूचित करते हैं कि धूम्रपान करने वाले पुरुषों की तुलना में धूम्रपान करने वाली महिलाओं में फेफड़े का कैंसर होने की संभावना अधिक है | |
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फेफड़े के कैंसर के मामले |
प्रारंभिक फेफड़े के कैंसर के दो मुख्य प्रकार हैं : नॉन-स्माल सेल और स्माल सेल | दोनों प्रकार, फेफडो की, अलग-अलग कोशिकाओं पर असर करती है तथा बढ़ती है और अलग तरह से फैलती है, इसलिए डॉक्टर्स दोनों प्रकार के कैंसर का इलाज अलग तरह से करते हैं | निदान के अंतर्गत न केवल फेफड़े के कैंसर के प्रकार की जानकारी दी जाएगी बल्कि उसकी अवस्था भी बताई जाएगी जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि बीमारी शरीर में कहाँ तक फ़ैली है |
मीसोथीलियोमा, छाती और पेट के अंदर की परत में होने वाला एक प्रकार का दुर्लभ कैंसर है, जो ज्यादातर उन व्यक्तियों को होता है जो अपने व्यवसाय के दौरान एस्बेस्टस के कणों के संपर्क में अधिक आते हैं | फेफड़ों में पाये जाने वाले ट्यूमर का आरंभ कभी-कभी शरीर में किसी और भाग से होता है | इस प्रकार के ट्यूमर को लंग मेटास्टासिस कहते हैं | |
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खतरे और निवारण |
किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करना फेफड़े के कैंसर के लिए बड़ा खतरा है | जो लोग धूम्रपान नहीं करते पर धूम्रपान के दौरान निकलने वाले धुएं का श्वास लेते हैं, जिसे अक्सर ‘सेकण्डहैण्ड स्मोक’ कहते हैं, उन्हें भी फेफड़े का कैंसर होने का खतरा अधिक है | किसी भी उम्र में तम्बाकू के धुए के संपर्क में आने को रोकने से फेफड़े का कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है | धूम्रपान के अलावा फेफड़े का कैंसर होने के खतरे के कारक निम्न हैं :
धूम्रपान विरमन यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति जिसे फेफड़े का कैंसर होता है उसे धूम्रपान करने की आदत हो | पर अगर आप धूम्रपान करते हैं तो इस आदत को छोड़कर आप अपने लिए और अपने आसपास के लोगों के लिए, फेफड़े का कैंसर होने का खतरा, कम कर सकते हैं | |
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निदान |
प्रारंभिक अवस्था में फेफड़े के कैंसर का पता लगना मुश्किल है क्योंकि जबतक बीमारी एडवांस्ड अवस्था में नहीं पहुँचती तबतक कोई रोग लक्षण नजर नहीं आते | रोग लक्षण इसपर निर्भर है कि ट्यूमर शरीर के किस हिस्से में हुआ है| लगातार होने वाली खांसी, आवाज में कर्कशता या घरघराहट, सांस की कमी, खून के साथ कफ का आना, बार-बार ब्रोनकायटिस या निमोनिया होना, वजन कम होना और भूख न लगना, तथा छाती में दर्द कुछ रोग लक्षण हैं | फेफड़े के कैंसर का निदान करने के लिए डॉक्टरस कई प्रकार के तकनीकों का प्रयोग करते हैं जिसके अंतर्गत निम्न आते हैं : इमेजिंग टेस्ट छाती का एक्स-रे, कंप्युटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन, और मेगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एमआरआय) फेफड़ों में असामान्य भागों का पता लगाने में मदद करते हैं | लो-डोस हेलिकल सीटी छाती के पारंपरिक सीटी स्कैन, मरीज को, रेडियेशन का कम संपर्क कराकर, ‘लो-डोस हेलिकल (या स्पाईरल) सीटी’ नामक तकनीक की तुलना में, फेफड़े के कैंसर का निदान करने के लिए एक नया तरीका प्रदान कर सकती है और डॉक्टर उन भागों को देख पाते हैं जो आम तौर पर छाती के मानक एक्स-रे में अस्पष्ट रहते हैं | ब्रोंकोस्कोपी एवं बायोप्सी कैंसर कोशिकाओं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए कफ के सैंपल की जांच की जा सकती है | डॉक्टर्स ब्रोंकोस्कोपी नाम की प्रक्रिया कर सकते हैं | इस प्रक्रिया में, ब्रोनकोस्कोप नामक उपकरण का उपयोग करके डॉक्टर्स ब्रोनकियल मार्ग की जांच करते हैं | यह एक छोटी नली है जिसे नाक या मुह में से घुसाकर गले के नीचे और ब्रोनकाय के अंदर घुसाया जाता है | प्रक्रिया के दौरान जांच करने के लिए डॉक्टर्स कुछ ऊतक निकाल सकते हैं | ‘ऑटोफ्लूरेसेन्स ब्रोंकोस्कोपी’ नामक ब्रोंकोस्कोपी का एक संशोधित प्रकार, जो प्रारंभिक आक्रामक कैंसर की पहचान कर सकते हैं, जिसे मानक एक्स-रे या श्वेत-किरण ब्रोनकोस्कोपी द्वारा देखा नहीं जा सकता, ऐसे अत्यंत प्रारंभिक अवस्था के कैंसर को पहचानने के लिए इस उपकरण का प्रयोग किया जा रहा है | ब्रोंकोस्कोपी की प्रक्रिया के दौरान फेफड़े के जिस हिस्से में प्रवेश नहीं किया जा सकता, वहां की ऊतक का एक छोटा सा भाग निकालने के लिए डॉक्टर्स ‘नीडल बायोप्सी’ (फाइन नीडल एस्पिरेशन” या एफएनए) कर सकते हैं | |
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उपचार |
बीमारी के स्तर और प्रकार के अनुसार, सर्जरी, कीमोथेरपी, रेडियेशन थेरपी, या इलाज के इन विविध प्रकारों को मिलाकर फेफड़े के कैंसर का इलाज किया जा सकता है | सर्जरी ऐसे नॉन-स्माल सेल फेफड़े के कैंसर, जो फेफड़े के बाहर नहीं फैले हैं, उनके लिए सर्जरी का अक्सर प्रयोग किया जाता है | पिछले कई सालों में, फेफड़े के कैंसर का इलाज करने के लिए सर्जरी की जिन तकनीकों का प्रयोग किया जाता है उसमें काफी सुधार हुआ है | फेफड़े के कैंसर का इलाज करने के लिए सर्जरी की तीन प्रक्रियाएं हैं जिनका सामान्य रूप से इस्तमाल किया जाता है :
मिनिमली इनवेसिव सर्जरी जहाँ उचित होता है, वहां हम, वीडियो की सहायता से की जाने वाली थोरॅसिक सर्जरी (वीएटीएस), या थोरॅकोस्कोपी जैसी मिनिमली इनवेसिव सर्जिकल प्रक्रियायें करते हैं | वीएटीएस प्रक्रिया के द्वारा, सर्जन, एक छोटे छेद के अंदर से फेफड़े में, पसलियों में से होकर, एक प्रकाशयुक्त ट्यूब को घुसाते हैं और रोबोट की मदद से ऑपरेशन करते हैं | खुले ऑपरेशन की तुलना में इस प्रक्रिया में किया जाने वाला काट कम होता है | इसलिए, ऑपरेशन के बाद जख्म के ठीक होने में लगने वाला समय तथा ऑपरेशन के बाद होने वाला दर्द बहुत कम हो जाता है | कीमोथेरपी ऐसे मरीज, जिनके ट्यूमर थोडी-सी बढ़ी हुई अवस्था में है, उनमें सर्जरी के पहले कीमोथेरपी देने से बीमारी के ठीक होने का प्रतिशत बढ़ जाता है | कुछ मामलों में, कीमोथेरपी से ही पूरा कैंसर ठीक हो जाता है और मरीज की सर्जरी करने की जरूरत नहीं पड़ती | अगर सर्जन ट्यूमर के उस पूरे हिस्से को निकालते हैं जो नजर आता है तब भी, आसपास के ऊतकों में या शरीर के किसी अन्य भाग में मौजूद कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए एड्जुवेंट कीमोथेरपी दी जा सकती है | ख़ास करके, स्माल सेल फेफड़े के कैंसर के लिए, रेडियेशन थेरपी के साथ कीमोथेरपी मिलाकर देना अब सबसे सामान्य इलाज है | रेडियेशन थेरपी जब सर्जरी इलाज का सबसे अच्छा विकल्प नहीं होता है तब हमारी रेडियेशन थेरपी सिस्टम ठीक ट्यूमर पर लक्ष्य करके रेडियेशन की सर्वाधिक संभव डोस देती है | इस प्रक्रिया से स्वस्थ ऊतक बच जाते हैं और छाती के अन्य अवयव को कम नुक्सान पहुंचता है | कभी-कभी दर्द और रक्त-स्राव को कम करने के लिए और निगलने की तकलीफ को कम करने के लिए भी रेडियेशन थेरपी दी जाती है | 3-D कन्फोर्मल रेडियेशन थेरपी और इंटेंसिटी मॉडयुलेटेड रेडियेशन थेरपी (आयएमआरटी) में डॉक्टर्स रेडियेशन की किरणों के आकार और तीव्रता को बदल सकते हैं जिससे ये किरणें कैंसर की कोशिकाओं पर बेहतर रूप से केन्द्रित होती हैं और आसपास के ऊतक और अवयव पर ये किरणें नहीं पड़ती | |
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त्वचा का कैंसर |
सूर्य की किरणें और त्वचा का कैंसर अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) रेडियेशन, त्वचा के कैंसर का एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारण है, विशेषकर जब अधिक धूप लगने से शरीर में धूप-ताम्रता और छाले पड़ जाते हैं | बार-बार एक्स-रे के संपर्क में आना और कोयला, टार, आर्सेनिक, और उद्योगों में इस्तमाल किए जाने वाले दूसरे कॉमपौंड (मिश्रण), त्वचा के कैंसर के कम देखे जाने वाले अन्य कारण हैं | जीवन और अच्छी सेहत के लिए जरूरी और फायदेमंद बहुत कुछ सूर्य की किरणें प्रदान करती हैं | पर टैनिंग या चर्मशोधन और जलन उपरोक्त फायदों में नहीं आते – “स्वस्थ टैन” जैसी कोई स्थिति नहीं होती | पिछले दशक में, अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया है कि सूरज की किरणों के संपर्क में आने से त्वचा की कोशिकाओं में मौजूद डीएनए खराब हो जाते हैं| इसके बाद ही ‘टैनिंग’ की प्रक्रिया आरंभ होती है | सूर्य की किरणों से आने वाली रेडियेशन या विकिरण के सही तरंग-दैर्घ्य और समय की जांच की जा रही है जिनसे विविध प्रकार के त्वचा के कैंसर होते हैं | इससे प्राप्त मूल निवारक पाठ एक ही है : अपनी त्वचा को सूर्य की किरणों से बचायें या सुरक्षित रखें | सौभाग्यवश, अधिकांश गैर-मेलानोमा त्वचा के कैंसर का निवारण करने और अगर ये कैंसर होते हैं, तो उनको प्रारंभिक अवस्था में ही रोकने के तरीके हैं | अगर प्रारंभिक अवस्था में ही इलाज प्रदान किया जाए तो, इस प्रकार के अधिकांश कैंसर ठीक हो जाते हैं | |
टाटा स्मारक अस्पताल
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